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बौर-कालीन भारत
१५६ घुड़सवार, ३६,००० गजारोही और २४,००० रथी अर्थात् कुल ६,९०,००० थी, जिनको नियमित रूप से वेतन मिलता था ।
सैनिक मंडल-सेना का शासन एक मंडल के अधीन था। इस मंडल में तीस सभासद थे, जो छः विभागों में विभक्त थे। प्रत्येक विभाग में पाँच सभासद होते थे। प्रथम विभाग जलसेनापति के सहयोग से जल-सैन्य का शासन करता था । द्वितीय विभाग के अधिकार में सैन्य-सामग्री और रसद आदि का प्रबन्ध रहता था । रण वाद्य बजानेवालों, साईसों, घसियारों आदि का प्रबन्ध भी इसी विभाग से होता था। तृतीय विभाग पैदल सेना की व्यवस्था करता था । चतुर्थ विभाग के अधिकार में सवार सेना का प्रबन्ध था। पंचम विभाग रथ-सेना की देख भाल करता था; और षष्ठ विभाग हस्ति-सैन्य का प्रबन्ध करता था। चतुरंगिणी सेना तो बहुत दिनों से चली आ रही थी; पर जल-सेना विभाग और सैन्य-सामग्री विभाग चन्द्रगुप्त ने नये स्थापित किये थे ।
सेना की भर्ती-चाणक्य के अनुसार पैदल सेना के सिपाही छः प्रकार से भर्ती किये जाते थे । यथा-"मौल" जो बाप-दादों के समय से राज-सेना में भर्ती होते चले आते थे; "भृत" जो किराये पर लड़ने के लिये भर्ती किये जाते थे; “श्रेणी" जो सहयोग के सिद्धांतों पर एक साथ रहनेवाली कुछ योद्धा जातियों में से भर्ती किये जाते थे; "मित्र" जो मित्र देशों में से भर्ती किये
* Pliny; VI, 19; Plutarch's “Life of Alexander" Ch, 62; Arian, Indica; Ch. 16; Strabo, XV, 52.
+ Ptiny, VI, 19 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com