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प्रजातन्त्र राज्य इतिहास लेखकों के इतिहासों और कौटिलीय अर्थशास्त्र से प्रजातन्त्र की निम्नलिखित विशेषताएँ सूचित होती हैं।
(१) साधारण तौर पर प्रजातन्त्र राज्य के कुल व्यक्ति शासन कार्य में योग देते थे और सब "राजा" कहलाते थे।
(२) उन राज्यों में एक या एक से अधिक प्रधान, मुखिया या अगुश्रा होते थे, जो शासन कार्य करते थे। किसी किसी राज्य में कुछ कुल भी ऐसे होते थे जिनके हाथ में शासन का काम रहताथा।
(३) उन राज्यों में सब के अधिकार बराबर समझे जाते थे।
(४) राज्य-संबंधी मामलों पर सब लोग मिलकर सभाभवन या "संथागार" में विचार करते थे।
(५) वे अपने नियमों का पालन यथोचित रूप से करते थे।
(६) अपनी शक्ति बढ़ाने के लिये कभी कभी कई प्रजातंत्र राज्य एक साथ मिलकर एक संयुक्त राज्य बन जाते थे।
(७) उन राज्यों को अपनी प्रतिष्ठा का बड़ा खयाल रहता था। वहाँ के लोग वीरता के लिये भी प्रसिद्ध थे। हारने की अपेक्षा लड़ते हुए मर जाना वे अधिक उत्तम समझते थे।
(८) कभी कभी उनमें फूट और द्वेष भी हो जाता था।
मौर्य काल में प्रजातन्त्र राज्यों का हास-मौर्य काल में धीरे धीरे प्रजातन्त्र राज्यों का ह्रास होने लगा। चन्द्रगुप्त के मन्त्री चाणक्य की कुटिल नीति के आगे प्रजातन्त्र राज्य न ठहर सके। चाणक्य की नीति यह थी कि सब छोटे छोटे राज्यों को तोड़कर एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया जाय और चन्द्रगुप्त मौर्य उसका अधिपति बनाया जाय । इसलिये उसने इन राज्यों को धीरे धीरे तोड़ फोड़कर साम्राज्य में मिलाना शुरू किया। उसने देखा कि
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