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प्रजातन्त्र राज्य
कहते थे । ये किसी राजा के अधीन न थे । राज्य का काम चलाने के लिये ये तीन मुखिया चुनते थे, जो "सेनापति" कहलाते थे । इनकी सेना में साठ हजार पैदल, छः हजार सवार और पाँच सौ रथ थे। इन लोगों ने सिकंदर का अधिपत्य स्वीकृत कर लिया था। ये कदाचित् उस स्थान के पास कहीं रहते थे, जहाँ पंजाब की पाँचो नदियाँ एक होकर सिंधु नदी में मिलती थीं ।
इनके सिवा यूनानी इतिहास-लेखकों ने “ संबस्तई" (Sambastai), "गेड्रोज़िआई" (Gedrosii), "एड्रेस्तई" (Adralstai), "सिबोई" (शैव ?) आदि कई प्रजातन्त्र जातियों के नाम लिखे हैं, जो सिकंदर के समय पंजाब में विद्यमान थीं। __ कौटिलीय अर्थशास्त्र में प्रजातन्त्र-राज्य-बौद्ध ग्रंथों और यूनानी इतिहासकारों के कथन की पुष्टि कौटिलीय अर्थशास्त्र से भी होती है, जिसमें एक अध्याय संघों या गण-राज्यों के बारे में है। उसमें संघ या गणराज्य दो भागों में बाँटे गये हैं; यथा
"काम्भोज-सुराष्ट्र-क्षत्रिय श्रेण्याइयो वार्ताशस्त्रोपजीविनः।" "लिच्छिविक-मल्लक-मद्रक-कुकुर-कुरु-पांचालादयो राजशब्दोपजीविनः ॥"
अर्थात्-कांभोज, सुराष्ट्र आदि के क्षत्रिय गण व्यापार तथा खेती करते थे और सेनाओं में भर्ती होकर युद्ध भी करते थे। ये एक प्रकार के गण राज्य हुए। दूसरे प्रकार का गणराज्य लिच्छवियों, वृजियों, मल्लों, मद्रों, कुकुरों, कुरुओं, पांचालों
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* Mc, Crindle's "Invasion of India by Alexander"
p. 252.
कौटिलीय अर्थशास्त्र, अधि० ११, अध्याय १. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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