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प्रजातन्त्र राज्य
का अनुमान है कि पंजाब और सिन्ध के आजकल के "खत्री" कदाचित् इन्हीं "क्षत्रियों" के वंशधर हैं । - (४) अगलस्सोई-यह जाति भी किसी राजा के अधीन न थी। इसने भी सिकंदर का मुकाबला बड़ी बहादुरी से किया था। इस जाति के लोग बड़े वीर, देशभक्त और मानमयदा के पालक थे। ये अप्रतिष्ठा और जातीय अपमान सहने की अपेक्षा मृत्यु को अधिक श्रेष्ठ समझते थे। इन लोगों ने चालीस हजार पैदल और तीस हजार सवार सेना के साथ सिकंदर का सामना किया; पर अंत में ये हार गये। इनमें से बहुतेरे मार डाले गये
और बहुतेरे पकड़कर गुलामों की तरह बेच डाले गये । सिकंदर ने इनके देश में तीस मील तक बढ़कर इनके प्रधान नगर पर कब्जा कर लिया। इसके बाद जब वह दूसरे नगर की ओर बढ़ा, तब बड़ी दृढ़ता के साथ रोका गया । इस लड़ाई में सिकंदर के बहुत से आदमी काम आये । कहा जाता है कि उस नगर में २०,००० मनुष्य थे। जब उन लोगों ने देखा कि अब नगर की रक्षा नहीं हो सकती, तब नगर में आग लगाकर वे सब उसमें जल मरे। उनमें से केवल तीन हजार मनुष्य बच गये । मुसलमानी जमाने में राजपूतों में सती की प्रथा कदाचित् इसी प्राचीन समय की प्रथा का अवशेष थी। यह जाति संभ. वतः झेलम और चनाब नदियों के बीच में रदती थी। इस जाति का असली नाम क्या था, यह नहीं कहा जा सकता । पर यूनानी लोग इसे अगलस्सोई (Agalassois) कहते थे ।
• Modern Review, May 1913, p. 538.
+v. Smith's "Early History of India" p. 93. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com