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चौद्ध-कालीन भारत
• १३४ को यह आज्ञा दे रक्खी थी कि वे दौरा करते हुए “धम्म" का प्रचार करें और इस बात की कड़ी देखभाल रक्खें कि लोग राजकीय आज्ञाओं का यथोचित पालन करते हैं या नहीं। तृतीय शिलालेख इसी विषय में है, जो इस प्रकार है-“देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ऐसा कहते हैं-मेरे राज्य में सब जगह “युक्त" ( छोटे कर्मचारी) रज्जुक (कमिश्नर) और प्रादेशिक (प्रांतीय अफसर) जिस प्रकार पाँच पाँच वर्ष पर और कामों के लिये दौरा करते हैं, उसी प्रकार धर्मानुशासन के लिये भी यह कहते हुए दौरा करें कि माता पिता की सेवा करना तथा मित्र, परिचित, स्वजातीय, ब्राह्मण और श्रमण को दान देना अच्छा है; जीवहिंसा न करना अच्छा है; कम खर्च करना और कम संचय करना अच्छा है।"
धर्म-महामात्रों की नियुक्ति-अपने राज्याभिषेक के तेरह ... वर्ष बाद अशोक ने "धर्म-महामात्र" नामक नये कर्मचारी नियुक्त किये थे। ये कर्मचारी समस्त राज्य में तथा पश्चिमी सीमा पर रहनेवालो गांधार आदि जातियों में धर्म का प्रचार और उसकी रक्षा करने के लिये नियुक्त थे। धर्म-महामात्रों की पदवी बहुत ऊँची थी और उनका कर्तव्य साधारण महामात्रों के कर्तव्यों से भिन्न था। धर्म-महामात्रों के नीचे "धर्म-युक्त" नामक दूसरी श्रेणी के राजकर्मचारी भी धर्म की रक्षा और उस का प्रचार करने के के लिये नियुक्त थे। वे धर्म-महामात्रों के काम में हर प्रकार से सहायता देते थे । त्रियाँ भी धर्म-महामात्र के पद पर नियुक्त की जाती थीं। "स्त्री-धर्ममहामात्र" अंतःपुर में त्रियों के बीचं धर्म, का प्रचार और उस की रक्षा का काम करती थीं। पंचम शिलालेख में धर्म-महामात्रों के कर्तव्य विस्तार के साथ दिये गये हैं।
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