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ख-कालीन भारत
१३६ विदेशों में धर्म का प्रचार-ई० पू० २५७ के लगभग अशोक ने "चतुर्दश-शिलालेख" खुदवाये । तेरहवें शिलालेख में उन उन देशों और राज्यों के नाम मिलते हैं, जिनमें अशोक ने धर्म का प्रचार करने के लिये अपने दूत या उपदेशक भेजे थे। इस शिलालेख से पता चलता है कि अशोक के राजदूत या धर्मोपदेशक निम्नलिखित देशों में धर्म का प्रचार करने के लिये गये थे-(१) मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत भिन्न भिन्न प्रदेश । (२) साम्राज्य के सीमांत प्रदेश, और सीमा पर रहनेवाली यवन, कांबोज, गांधार, राष्ट्रिक, पितनिक, भोज, आंध्र, पुलिंद आदि जातियों के देश । (३) साम्राज्य की जंगली जातियों के प्रांत । (४) दक्षिणी भारत के स्वाधीन राज्य; जैसे केरलपुत्र, सत्यपुत्र, चोड़ और पांड्य । (५) सहल या लंका द्वीप । ( ६ ) सीरिया, मिस्त्र, साइरीनी, मेसिडोनिया और एपिरस नामक पाँच यूनानी राज्य, जिन पर क्रम से अंतियोक (Antiochos II. 261-246. B.C), तुरमय (Ptolomy Philadelpbos. 285-247 B. c.), मक (Magas. 285-255 B. C.), अंतिकिनि (Antigonos Gonatas. 277-239. B. C.) और अलिकसुंदर (Alexander. 272-258 B. C.), नाम के राजा राज्य करते थे। ई० पू० २५८ में ये पाँचो राजा एक ही समय में जीवित थे। अतएव यह अनुमान किया जाता है कि मोटे तौर पर ई० पू० २५८ में अशोक के राजदूतः या धर्मोपदेशक धर्म का प्रचार करने से लिये विदेशों में भेजे गये थे । तात्पर्य यह कि अशोक के धर्मोपदेशक केवल भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि एशिया, अफ्रिका और युरोप इन तीनों महाद्वीपों में फैले हुए थे । सिंहल या लंका द्वीप में जो धर्मोपदेशक भेजे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com