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प्रजातंत्र गज्य
मिलकर सभापति का चुनाव करते थे जो "राजा" कहलाता था ।
पन्जियों का प्रजातंत्र राज्य-"वजियों" का प्रजातंत्र राज्य प्राचीन भारतवर्ष का एक संयुक्त राज्य था । इस प्रजातन्त्र राज्य में आठ भिन्न भिन्न जातियाँ सम्मिलित थीं। ये आठो जातियाँ एक होने के पहले बिलकुल अलग अलग थीं। इस संयुक्त-प्रजातन्त्र राज्य की राजधानी वैशाली थी। इसकी दो प्रधान जातियाँ "विदेह” और “लिच्छवि' नाम की थीं। विदेह 'पहले एक-तन्त्र राज्य था। रामायण और उपनिषद् के प्रसिद्ध राजा जनक इसी विदेह राज्य के अधिपति थे। प्रारंभ में विदेहों का राज्य तेईस सौ मील तक फैला हुआ था । पहले किसी समय लिच्छवि लोग तीन मनुष्यों को चुनकर उन्हें शासन का कार्य सौंप देते थे। वे तीनों उनके अग्रणी या मुखिया होते थे। लिच्छवियों की एक महासभा थी, जिसमें बूढ़े और जवान सब शामिल होते थे और राज-कार्य में योग देते थे। “एकपण्ण जातक" तथा “चुल्ल-कलिंग जातक" में इस महासभा के सभासदों की संख्या ७७०७ दी गई है । कदाचित् इस संख्या में उस जाति के सब लोग शामिल थे। इस महासभा के सभासद "राजा" कहलाते थे। वे महासभा में बैठकर सिर्फ कानून बनाने में ही राय नहीं देते थे, बल्कि सेना और आय व्यय सम्बन्धी सब बातों की भी देखभाल करते थे। इस सभा में राज्य-संबंधी सब बातों पर विचार और वाद-विवाद होता था । शासन के सुभीते के लिये यह महासभा अपने सभासदों में से नौ सभासदों की एक संस्था चुन लेती थी। ये नौ सभासद “गण-राजानः" कहलाते थे और समस्त जन-समुदाय के प्रतिनिधि होते थे। “मदसाल जातक" से पता
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