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राजनीतिक इतिहास गये थे, उनका नेता सम्राट अशोक का पुत्र महेंद्र था। महेंद्र यद्यपि राजकुमार था, तथापि धर्म की सेवा करने के लिये उसने बौद्ध संन्यासी का जीवन ग्रहण किया था। उसने आजीवन लंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया और वहाँ के राजा "देवानां प्रियतिष्य" और उसके सभासदों को बौद्ध धर्म का अनुयायी बनाया। कहा जाता है कि वहाँ महेंद्र की अस्थियाँ एक स्तूप के नीचे गड़ी हुई हैं । लंका के “महावंश" नामक बौद्ध ग्रन्थ में यह भी लिखा है कि अशोक के दूत धर्म-प्रचारार्थ सुवर्ण-भूमि (बरमा ) में भी गये थे । पर शिलालेखों में सुवर्णभूमि का उल्लेख नहीं है । यदि अशोक ने बरमा में अपने दूतों को भेजा होता, तो शिलालेखों में उसका वर्णन अवश्य किया होता ।
___ धार्मिक उत्साह-अशोक ने अपने धार्मिक प्रेम और उत्साह की बदौलत बौद्ध धर्म को, जो पहले केवल एक छोटे से प्रांत में सीमाबद्ध था, संसार का एक बहुत बड़ा धर्म बना दिया। गौतम बुद्ध के जीवन-काल में बौद्ध धर्म का प्रचार केवल गया, प्रयाग और हिमालय के बीचवाले प्रांत में था। जब ई० पू० ४८७ में बुद्ध भगवान् का निर्वाण हुआ, तब बौद्ध धर्म केवल एक छोटा सा संप्रदाय था। पर अशोक की बदौलत यह धर्म भारतवर्ष के बाहर दूसरे देशों में भी फैल गया । यद्यपि अब यह धर्म अपनी जन्मभूमि अर्थात् भारतवर्ष से बिलकुल लुप्त हो गया है, पर लंका, बरमा, तिब्बत, नैपाल, भूटान, चीन, जापान और कोरिया में इस धर्म का प्रचार अब तक बना हुआ है । यह केवल अशोक के धार्मिक उत्साह का परिणाम है। अशोक का नाम सदा उन थोड़े से लोगों में गिना जायगा, जिन्होंने अपनी
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