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गजनीतिक इतिहास
करें, तो हमें मानना पड़ेगा कि मौर्य वंश का अंत ई० पू० १८५ के लगभग हुआ। पर निश्चित रूप से यही कहा जा सकता है कि चन्द्रगुप्त ने जिस बड़े साम्राज्य की नींव डाली थी और जिसकी उन्नति बिन्दुसार तथा अशोक के जमाने में होती रही, वह अशोक के बाद बहुत दिनों तक कायम न रह सका । मौर्य साम्राज्य के पतन का एक बहुत बड़ा कारण यह था कि अशोक के बाद ब्राह्मणों ने इस साम्राज्य के विरुद्ध लोगों को भड़काना शुरू किया। अशोक के ज़माने में ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत कुछ घट गया था; क्योंकि वह बौद्ध धर्म का अनुयायी होने के कारण ब्राह्मणों की अपेक्षा बौद्धों का अधिक पक्षपात करता था। अशोक ने यज्ञों में पशु-वध भी बन्द करवा दिया था; और उसके धर्ममहामात्र कदाचित् लोगों को बहुत तंग करते थे, जिससे लोगों में बड़ा असन्तोष फैल गया था । इसलिये ज्योंही अशोक की आँख मूंदी, त्योंही ब्राह्मणों का प्रभाव बढ़ने और मौर्य साम्राज्य के विरुद्ध आन्दोलन होने लगा। अशोक के जिन उत्तराधिकारियों के नाम पुराणों में मिलते हैं, उनके अधिकार में केवल मगध और आसपास के प्रांत बच गये थे। अशोक की मृत्यु के बाद ही आंध्र और कलिंग प्रांत मौर्य साम्राज्य से निकलकर स्वाधीन हो गये। मौर्य साम्राज्य का अंतिम राजा बृहद्रथ बहुत ही कमजोर था। उसके सेनापति पुष्यमित्र ने ई० पू० १८४ में उसे मारकर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। उसने एक नये राजवंश की नींव डाली, जो इतिहास में शुंग वंश के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार भारतवर्ष के इतिहास में मौर्य साम्राज्य का सदा के लिये अस्त हो गया।
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