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बौद्ध-कालीन भारत शक्ति और उत्साह के द्वारा संसार के धर्म में महान् परिवर्तन किये हैं।
__ स्वभाव और चरित्र-अशोक का स्वभाव और चरित्र उसके लेखों से झलक रहा है। उन लेखों की शैली से पता लगता है कि भाव और शब्द दोनों अशोक ही के हैं। कलिंगयुद्ध से होनेवाली विपत्तियों को देखकर अशोक को जो पश्चात्ताप हुआ, उसे कोई मंत्री अपने शब्दों में प्रकट करने का साहस नहीं कर सकता था। उस पश्चात्ताप का वर्णन अशोक के सिवा और कोई न कर सकता था । उसके धर्म-लेखों से सूचित होता है कि उसमें केवल राजनीतिज्ञता ही नहीं, बल्कि सच्चे संन्यासियों की सी पवित्रता और धार्मिकता भी कूट कूटकर भरी हुई थी। उसने अपने प्रथम गौण शिलालेख में इस बात पर जोर दिया है कि छोटे और बड़े हर मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मोक्ष के लिये उद्योग करे और अपने कर्म के अनुसार फल भोगे । उसने अपने लेखों में बड़ों के आदर, दया, सत्य और सहानुभूति पर बहुत जोर दिया है और बड़ों के अनादर, निर्दयता, असत्य और दूसरे धर्मों तथा संप्रदायों के साथ घृणायुक्त व्यवहार की बहुत निंदा की है। अशोक निस्सन्देह एक बड़ा मनुष्य था । वह एक बड़ा सम्राट होते हुए भी बड़ा भारी धर्मप्रचारक था। उसमें सांसारिक और आत्मिक दोनों प्रकार की शक्तियाँ विद्यमान थीं; और उन शक्तियों को वह सदा अपने एक मात्र उद्दश्य अर्थात् धर्म-प्रचार में लगाने का प्रयत्न करता था।
अशोक की रानियाँ-अशोक की कई रानियाँ थीं। कम से कम दो रानियाँ तो अवश्य थीं, जिनके नाम के आगे "देवी" की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com