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बौद्ध-कालीन भारत मुर्गी, बटेर, मेढ़े और साँड़ वगैरह की लड़ाइयाँ होती हैं, उसी तरह चन्द्रगुप्त भी जानवरों की लड़ाइयों से अपना मनोरंजन करता था। उसके दरबार में पहलवानों के दंगल भी होते थे । जिस तरह आजकल घोड़ों की दौड़ होती है, उसी तरह चन्द्रगुप्त के समय में भी बैल दौड़ाये जाते थे; और वह उस दौड़ को बहुत रुचि से देखता था। आजकल की तरह उस समय भी लोग दौड़ में बाजी लगाते थे । दौड़ने की जगह छः हजार गज़ के घेरे में रहती थी और एक घोड़ा तथा उसके इधर उधर दो बैल एक रथ को लेकर दौड़ते थे। चन्द्रगुप्प को शिकार का भी बड़ा शौक था। जानवर एक घिरी हुई जगह में छोड़ दिया जाता था। वहाँ एक चबूतरा बना रहता था, जिस पर खड़ा होकर चन्द्रगुप्त शिकार को तीर से मारता था । अगर शिकार
खुली जगह में होता था, तो वह हाथी पर से शिकार करता था। | शिकार के समय अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित स्त्रियाँ उसकी रक्षा
करती थीं। ये स्त्रियाँ विदेशों से खरीदकर लाई जाती थीं। प्राचीन राजाओं के दरबार में इस तरह की स्त्री-रक्षिकाएँ रहा करती थीं। मुद्राराक्षस और कौटिलीय अर्थ शास्त्र में भी स्त्रीरक्षिकाओं का वर्णन मिलता है। अर्थशास्त्र में लिखा है-“शयनादुत्थितस्स्त्रीगणैर्धन्विभिः परिगृह्येत" । अर्थात् पलंग से उठने के बाद धनुर्बाण से सुसज्जित खियाँ राजा की सेवा में उपस्थित हों।* जिस सड़क से महाराज का जलूस निकलता था, उसके दोनों ओर रस्सियाँ लगी रहती थीं; और उन रस्सियों के पार जाने
___ * कोटिलीय अर्थशास्त्र, अधि० १, अध्या० २१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com