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बौद्ध-कालीन भारत
१३०. अधिक होंगे, जो चट्टानों, गुफाओं की दीवारों और सम्भों पर खुदे हुए मिलते हैं । इन्हीं लेखों से अशोक के इतिहास का सच्चा पता लगता है। अशोक के लेख लगभग कुल भारतवर्ष में, हिमालय से मैसूर तक और बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक, फैले हुए हैं। इन लेखों की भाषा बौद्ध ग्रंथों की पाली भाषा से बहुत कुछ मिलती जुलती है । ये लेख ऐसे स्थानों में खुदवाये गये थे, जहाँ लोगों का आवागमन अधिक होता था। अशोक के लेख निम्नलिखित आठ भागों में बाँटे जा सकते हैं-(१) चतुर्दश-शिलालेख जो पहाड़ की चट्टानों पर खुदे हुए सात स्थानों में पाये जाते हैं। (२) दो कलिंग शिलालेख जो कलिंग के दो स्थानों में पहाड़ की चट्टानों पर खुदे हुए मिलते हैं। (३) गौण शिलालेख जो सात स्थानों में चट्टानों पर खुदे हुए पाये . जाते हैं। (४) भाबू शिलालेख जो जयपुर रियासत में बैराट के पास एक पहाड़ी की चट्टान पर खुदा हुआ था और आजकल कलकत्ते के अजायबघर में रक्खा हुआ है। (५) सप्त स्तंभ-लेख जो स्तंभों पर खुदे हुए भिन्न भिन्न छः स्थानों में पाये जाते हैं। (६) गौण-स्तंभ-लेख जो सारनाथ, कौशांबी (प्रयाग) और साँची में पाये जाते हैं । (७) दो तराई-स्तंभ-लेख जो नेपाल की सरहद पर रुमिनदेई ग्राम तथा निग्लीव ग्राम में हैं । और (८) तीन गुहालेख जो गया के पास बराबर नाम की पहाड़ी में हैं ।
बौद्ध होने के पहले अशोक का धार्मिक विश्वासकहा जाता है कि. प्रारम्भ में अशोक ब्राह्मणों का अनुयायी और शिव का भक्त था। उन दिनों प्राणि-वध करने में उसे कोई हिचक न होती थी। सहस्रों प्राणी त्योहारों और उत्सवों पर मांस
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