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राजनीतिक इतिहास के लिये वध किये जाते थे। पर ज्यों ज्यों उस पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ने लगा, त्यों त्यों प्राणि-वध को वह घृणा की दृष्टि से देखने लगा । अन्त में उसने प्राणि-वध बिलकुल उठा दिया । उस ने अपने प्रथम "चतुर्दश-शिलालेख" में लिखा भी है"देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा अशोक की पाकशाला में पहले प्रति दिन कई सहस्र प्राणी सूप (शोरबा ) बनाने के लिये वध किये जाते थे। पर अब से, जब कि यह धर्म-लेख लिखा जा रहा है, केवल तीन ही प्राणी मारे जाते हैं; अर्थात् दो मोर और एक मृग । पर मृग का मारा जाना निश्चित नहीं है। ये तीनों प्राणी भी भविष्य में न मारे जायेंगे।"
धर्म-यात्रा-उक्त शिलालेख खुदवाने के दो वर्ष पहले अर्थात् ई० पू० २५९ में अशोक ने शिकार खेलने की प्रथा उठा दी थी। उसने यह एक नई बात की थी। चन्द्रगुप्त के ज़माने में शिकार खेलने का बड़ा रवाज था। वह बहुत धूमधाम के साथ शिकार खेलने निकलता था। इस संबंध में अशोक ने अष्टम शिलालेख में लिखा है-"पहले के जमाने में राजा लोग विहारयात्रा के लिये निकलते थे। इन यात्राओं में मृगया (शिकार )
और इसी प्रकार की दूसरी आमोद प्रमोद की बातें होती थीं। पर प्रियदर्शी राजा ने अपने राज्याभिषेक के दस वर्ष बाद बौद्ध मत ग्रहण किया । तभी से उसने विहार-यात्रा के स्थान पर धर्म-यात्रा की प्रथा का प्रारम्भ किया। धर्म-यात्रा में श्रमणों, 'ब्राह्मणों और वृद्धों के दर्शन किये जाते हैं, उन्हें सुवर्ण इत्यादि का दान दिया जाता है; ग्रामों में जाकर धर्म की शिक्षा दी जाती है और धर्म के संबंध में परस्पर मिलकर विचार किया जाता है।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com