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बौर-कालीन भारत
१२८ यह नगर ई० पू० २५० या २४९ में नेपाल-यात्रा के स्मारक में बनवाया था। उसके साथ नेपाल में उसकी लड़की चारुमती भी गई थी, जो अपने पिता के लौट आने के बाद बौद्ध संन्यासिनी हो कर वहीं रहने लगी थी। अशोक ललितपाटन को बड़ा पवित्र स्थान समझता था । वहाँ उसने पाँच बड़े बड़े स्तूप बनवाये थे, जिनमें से एक तो नगर के मध्य में और बाकी चार नगर के चारों कोनों पर थे। ये सब स्मारक अब तक स्थित हैं और हाल में बने हुए स्तूपों तथा मन्दिरों से बिलकुल भिन्न हैं। पूर्व की ओर गंगा के मुहाने तक समस्त वंग देश उसके साम्राज्य में शामिल था । गोदावरी नदी के उत्तर में समुद्र-तट का वह हिस्सा, जो कलिंग के नाम से प्रसिद्ध था, ई० पू० २६१ में जीतकर मिलाया गया था। दक्षिण में गोदावरी और कृष्णा नदी के बीचवाला प्रांत अर्थात् आन्ध्र देश कदाचित् मौर्य साम्राज्य का एक संरक्षित राज्य था और उसका शासन वहीं के राजा करते थे। दक्षिणपूर्व में उत्तरी पेनार नदी अशोक के साम्राज्य की दक्षिणी सीमा समझी जा सकती है। भारतवर्ष के बिलकुल दक्षिण में चोल और पांड्य नाम के तामिल राज्य तथा मलाबार के किनारे पर केरलपुत्र और सत्यपुत्र नाम के राज्य अवश्यमेव स्वतंत्र थे। इसलिये साम्राज्य की दक्षिणी सीमा पूर्वी किनारे पर नीलौर के पास उत्तरी पेनार नदी के मुहाने से लेकर पश्चिमी किनारे पर मॅगलौर के पास कल्याणपुरी नदी तक थी। पश्चिमोत्तर सीमा में तथा विंध्य पर्वत के जंगलों में जो जंगली जातियाँ रहती थीं, वे कदाचित् मौर्य साम्राज्य के आधिपत्य में स्वयं शासन करती थीं। इसलिये मोटे तौर पर हिन्दूकुश पर्वत के नीचे अफगानिस्तान, बलोShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com