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बौद्ध-कालीन भारत
१२६ से स्मारक खड़े किये, जिनमें से कुछ स्मारकों का पता अनेक शताब्दियों के बाद अब लगा है।
भितु-सम्प्रदाय में अशोक-अशोक के संबंध में एक विचित्र बात यह है कि वह बौद्ध भिक्षु भी था और साथ ही विस्तृत साम्राज्य का शासन भी करता था। अशोक के नौ शताब्दी बाद ईसिंग नामक चीनी बौद्ध यात्री भारत में आया था। उसने अशोक की मूर्ति बौद्ध संन्यासी के वेष में स्थापित देखी थी। बौद्ध संन्यासी को जब चाहे, तब गार्हस्थ्य जीवन में लौटने की स्वतंत्रता रहती है । संभव है, अशोक कभी कभी थोड़े समय के लिये, राज्य का उचित प्रबन्ध करने के बाद, किसी विहार या संघाराम में जाकर एकांत-वास करता रहा हो। मालूम होता है. कि प्रथम गौण शिलालेख और भाव शिलालेख उस समय खुदवाये गये थे, जब वह बैराट के संघाराम में एकांत-वास कर रहा था । इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने जीवन के अंतिम पचीस वर्षों में वह संघ और साम्राज्य दोनों का शासक तथा नेता था।
अशोक के समय में बौद्ध महासभा-लगभग तीस वर्षों तक राज्य करने के बाद ई० पू० २४३ में या उसके लगभग अशोक ने सप्त-स्तंभ-लेख खुदवाये, जिनमें वही बातें दोहराई गई हैं, जो उसने पहले के शिला-लेखों में लिखी थीं। इनमें से अंतिम सप्त-स्तंभ लेखों में उसने उन उपायों का सामान्य रीति से समालोचनात्मक वर्णन किया है, जिनकी सहायता से उसने “धम्म" या धर्म का प्रचार किया था। पर आश्चर्य है कि उसने अपने इस सिंहावलोकन में बौद्ध नेताओं की उस महासभा का उल्लेख नहीं किया, जो बौद्ध संघ में फूट रोकने के लिये उसके राज्य काल में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com