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राजनीतिक इतिहास वाले को मौत की सजा दी जाती थी। बाद को चन्द्रगुप्त के पोते अशाक ने शिकार खेलने की प्रथा बिलकुल ही उठा दी थी।
चन्द्रगुप्त की जीधन-धर्या-चन्द्रगुप्त प्रायः महल के अन्दर ही रहता था; और बाहर सिर्फ मुक़दमे सुनने, यज्ञ में सम्मिलित होने या शिकार खेलने के लिये निकलता था। उसे कम से कम दिन में एक बार प्रार्थनापत्र ग्रहण करने और मुकदमे ते करने के लिये अवश्य बाहर आना पड़ता था। चन्द्रगुप्त को मालिश करवाने का भी बड़ा शौक था। जिस समय वह दरबार में लोगों के सामने बैठता था, उस समय चार नौकर उसे मालिश किया करते थे । राजा की वर्षगाँठ बहुत धूमधाम से मनाई जाती थी और बड़े बड़े लोग उसे बहुमूल्य वस्तुएँ भेंट करते थे। पर इतनी अधिक सावधानता और रक्षा होते हुए भी चन्द्रगुप्त को सदा अपनी जान का भय लगा रहता था। वह डर के मारे दिन को या लगातार दो रात तक एक ही कमरे में कभी नहीं सोता था। मुद्राराक्षस में भी लिखा है कि चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मार डालने की कई बन्दिशों का पता लगाकर उसकी जान बचाई थी।
चन्द्रगुप्त की सफलताएँ-जिस समय चन्द्रगुप्त रागजद्दी पर बैठा, उस समय उसकी अवस्था अधिक न थी । उसने केवल चौबीस वर्षों तक राज्य किया। इससे मालूम होता है कि वह अपनी मृत्यु के समय पचास वर्ष से कम का हो रहा होगा। इस थोड़े से समय में उसने बड़े बड़े काम किये । उसने सिकन्दर की यूनानी सेनाओं को भारतवर्ष से निकाल बाहर किया, सेल्यूकस को गहरी हार दी, एक समुद्र से लेकर दूसरे समुद्र तक कुल उत्तरी भारत अपने अधिकार में किया, बड़ी भारी सेनाएँ संघटित की और
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