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संघ का इतिहास पिटक में भिन्न प्रकार की औषधियाँ बनाने और चीर फाड़ करने की विधि लिखी है, जिससे हमें उस समय की वैद्यक विद्या का भी कुछ कुछ पता लगता है।
संघ का प्रबन्ध-अब हम यह बतलाना चाहते हैं कि संघ की व्यवस्था और प्रबन्ध कैसा था। जब तक बुद्ध भगवान् जीवित थे, तब तक उनकी आज्ञा और उनके शब्द ही संघ के लिये कानून का काम देते थे । पर दो कारणों से यह व्यवस्था स्थायी न हो सकती थी। पहला कारण तो यह था कि देश में संघ का विस्तार इतना अधिक हो रहा थ कि एक आदमी के वश का न रह गया था। दूसरा कारण यह था कि बुद्ध के बाद भी संघ का ठीक ठीक परिचालन करने के लिये किसी स्थायी व्यवस्था की
आवश्यकता थी। अतएव धीरे धीरे उस स्थायी व्यवस्था का विकास होने लगा । यद्यपि यह व्यवस्था बहुत दिनों में पूर्ण विकास को पहुँची, तथापि इसका बीज बुद्ध के जीवन-समय में ही पड़ गया था । बुद्ध के निर्वाण के बाद जब संघ अपने पूर्ण विकास को पहुँच चुका था, तब भी बुद्ध की आज्ञा और बुद्ध के शब्द ही संघ के लिये कानून थे। वास्तव में संघ का यह एक माना हुआ सिद्धान्त था कि बुद्ध को छोड़कर और कोई संघ के लिये नियम या कानून नहीं बना सकता था। दूसरे लोग बुद्ध के बनाये हुए नियमों की केवल व्याख्या कर सकते थे; पर नये नियम नहीं बना सकते थे। यह सिद्धान्त बुद्ध के निर्वाण के बाद राजगृह की प्रथम बौद्ध महासभा में निश्चित हुआ था।
हर एक संघ अपने प्रबन्ध में स्वतंत्र था। कोई ऐसी बड़ी संस्था न थी, जो कुल संघों पर अपना दबाव रख सकती। यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com