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राजनीतिक इतिहास
का ब्राह्मण चंद्रगुप्त को राजगद्दी पर बैठावेगा।" केवल विष्णु पुराण की टीका में इतना और अधिक लिखा हुआ है-"चंद्रगुप्तं नंन्दस्यैव शूद्रायां मुरायां जातं मौर्याणां प्रथमम् ।" अर्थात् "चंद्रगुप्त का नाम मौर्य इसलिये पड़ा कि वह राजा नन्द की मुरा नामक शूद्रा दासी से उत्पन्न हुआ था।" मुद्राराक्षस नाटक से इतना और पता लगता है कि चन्द्रगुप्त नन्द के वंश का था। किन्तु उसमें यह कहीं नहीं लिखा मिलता कि वह नन्द का पुत्र था । चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास लिखने के पहले हम सिकन्दर के आक्रमण का कुछ वृत्तान्त लिख देना चाहते हैं ।
सिकंदर का आक्रमण सिकन्दर का आगमन-महा प्रतापी सिकन्दर, फारस, सीरिया, मिस्र, फिनीशिया, फिलस्तीन, बाबिलोन, बैक्ट्रिया आदि एशियाई देशों को जीतता और अपने राज्य में मिलाता हुआ ई० पू० ३२७ में लगभग ५०-६० हजार वीर योद्धाओं के साथ, हिन्दूकुश के दरों को लाँघकर सिकन्दरिया (अलेक्जन्ड्रिया) नगर में आकर ठहरा। उस समय काबुल और सिन्धु नदियों के बीच का प्रदेश, जो आजकल का अफगानिस्तान और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त है, कई छोटी छोटी स्वतन्त्र तथा युद्ध-प्रिय जातियों के अधिकार में था। ये जातियाँ आपस में सदा लड़ा मगड़ा करती थीं। इनको जीतता तथा इनका दमन करता हुआ सिकन्दर अपनी बड़ी सेना के साथ सिन्धु नदी के किनारे पर
आया; और ई० पू० ३२६ की वसन्त ऋतु में उसने अटक से सोलह मील ऊपर ओहिन्द नामक स्थान के पास नावों का पुल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com