________________
१०१
संघ का इतिहास बातों के नियम "महावग्ग" में बहुत विस्तार के साथ दिये हैं। जिन भिक्षुओं को उपसम्पदा मिल चुकी होती थी, वे कुल भिक्षु अपने संघ की साधारण परिषद् के सभ्य हो सकते थे । उनमें से हर एक को उस परिषद् में सम्मति देने का अधिकार होता था। हाँ, कभी कभी दण्ड के तौर पर किसी किसी भिक्षु से सम्मति देने का अधिकार छीन लिया जाता था । परिषद् की कोई बैठक तब तक नियमानुकूल न समझी जाती थी, जब तक सम्मति देने का अधिकार पाये हुए कुल सभ्य उसमें उपस्थित न होते थे; या किसी कारण अनुपस्थित होने पर नियमानुसार अपनी सम्मति न प्रकट करते थे । अनुपस्थित सभ्यों की नियमानुमोदित सम्मति को "छन्द" कहते थे । “महावग्ग” (९.४.) में इस विषय के नियम दिये हैं कि कम से कम कितने भिक्षुओं की उपस्थिति होने पर परिषद् की बैठक हो सकती थी । भिन्न भिन्न कार्यों के लिये भिन्न भिन्न संख्या नियत थी। कुछ कार्य तो ऐसे थे, जिनके लिये केवल चार भिक्षुओं की उपस्थिति आवश्यक थी; और कुछ कार्य ऐसे थे, जिनके लिये कम से कम बीस भिक्षुओं का उपस्थित होना परमावश्यक था। यदि किसी उपस्थित सभ्य की सम्मति में परिषद् की बैठक नियम-विरुद्ध होती थी, तो वह उसका विरोध कर सकता था।
जब परिषद् में सब भिक्षु जमा हो जाते थे, तब जो सभ्य प्रस्ताव करना चाहता था, वह अपना प्रस्ताव परिषद् के सामने रखता था। प्रस्ताव की सूचना को “बत्ति" या "ज्ञप्ति" कहते थे। "ज्ञप्ति" के उपरान्त "कम्मवाची" होती थी; अर्थात् उपस्थित
___ * महावग्ग (९.३.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com