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संघ का इतिहास
संघ में प्रवेश-सब से पहले हम यह बतलाना चाहते हैं कि संघ में किस तरह के लोग भर्ती किये जाते थे और उनके भर्ती करने का ढग क्या था। जो स्त्री या पुरुष संसार से विरक्त होकर भिक्षुणो या भिक्षु का जीवन व्यतीत करना चाहते थे, वे बिना किसी जाति-भेद के या विना ऊँच नीच के किसी विचार के संघ में भर्ती कर लिये जाते थे । बुद्ध के पहले शूद्र वर्ण के लोग वानप्रस्थ, परिव्राजक या भिक्षु न हो सकते थे। पर बुद्ध ने ऊँच नीच का भेद उठाकर बौद्ध संघ का द्वार शूद्रों के लिये भी खोल दिया। हाँ निम्नलिखित व्यक्ति, चाहे वे कितनी ही ऊँची जाति के क्यों न होते, संघ में भर्ती नहीं किये जाते थे। वे व्यक्ति ये थे(१) जिसको कोढ़ या दूसरी छूत की बीमारी हो; (२) जो राजसेवा में हो; (३) जो चोर, डाकू या लुटेरा हो; (४) जिसे राजदण्ड मिला हो; (५) जो ऋणी (कर्जदार) हो; (६) जो किसी का दास हो; (७) जो पंद्रह वर्ष से कम उम्र का हो; (८) जो नपुंसक हो; (९) जो लूला लँगड़ा हो या जिसके किसी अंग में कज हो; और (१०) जिसने किसी की हत्या की हो ।* __ जब कोई व्यक्ति घर छोड़कर संघ में भर्ती होने के लिये आता था, तो कहा जाता था कि उसने-“पब्बज्जा" (प्रव्रज्या) ग्रहण की है । प्रव्रज्या ग्रहण करने के बाद संघ में भर्ती होने के समय जो संस्कार किया जाता था, उसे "उपसम्पदा" कहते थे। उपसम्पदा संस्कार होने के बाद पुरुष या स्त्री "भिक्षु" या "भिक्षुणी" कहलाती थी; और संघ के अन्तर्गत जितने अधिकार
* महावग्ग( विनयपिटक )१-३६,४०,४१,४२,४३,४४,४५,४६,४७, ५०,६१,७१।
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