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बौद्ध-कालीन भारत झुण्ड परिव्राजक और संन्यासी एक स्थान से दूसरे स्थान को विचरा करते थे, या एक ही स्थान पर निवास करते थे । विनयपिटक में लिखा है कि गौतम बुद्ध के समय में उरुवेल कस्सप, नदी कस्सप और गया कस्सप नाम के तीन जटिल उरुवेल नामक ग्राम में रहते थे। वे क्रम से पाँच सौ, तीन सौ और दो सौ जटिलों के नेता या गुरु थे। जटिल लोग एक प्रकार के वानप्रस्थ या वैखानस थे। विनयपिटक ही में यह भी लिखा है कि बुद्ध के समय में संजय नाम के परिव्राजक राजगृह में ढाई सौ परिव्राजकों के साथ रहते थे। इसके सिवा बौद्ध ग्रन्थों में "निर्ग्रन्थ"
और "आजीविक" सम्प्रदाय के भिक्षुओं का भी अनेक बार उल्लेख आया है। स्वयं बुद्ध भी "परिव्राजक" रह चुके थे ।
इन उल्लेखों से यह सिद्ध होता है कि बुद्ध-अवतार के बहुत पहले से ही भिक्षु, परिव्राजक, संन्यासी आदि किसी न किसी प्रकार की संस्था या संघ बनाकर एक साथ रहा करते थे । अतएव बुद्धदेव ने जो संघ स्थापित किया था, वह कोई नई चीज नहीं था। इस तरह के संघ उनके समय में बहुत प्रचलित हो चुके थे। बुद्धदेव ने केवल उस समय के संघों के आधार पर' अपना निज का एक संघ स्थापित किया, जो बढ़ते बढ़ते एक समय में समस्त भारत क्या, बल्कि समस्त एशिया में फैल गया ।
अब हम बौद्ध संघ का वर्णन करते हुए आपको यह बतलाने का प्रयत्न करेंगे कि
(१) उसमें किस प्रकार के लोग कैसे भर्ती किये जाते थे। (२) उसके अन्दर भिक्षुओं का जीवन किस प्रकार का था। (३) उसकी व्यवस्था और प्रबन्ध किस प्रकार होता था ।
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