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सिद्धान्त और उपदेश
__अर्थात् मित्र की दृष्टि से हम सब प्राणियों को देखते हैं । . पातंजल दर्शन में भी एक सूत्र इसी विषय में है___“मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भाषानासश्चित्तप्रसादनम् ।"
अर्थात् मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा इन चार भावनाओं से चित्त में प्रसन्नता होती है। __इन सब बातों पर विचार करके कहना पड़ता है कि सनातन वैदिक धर्म ही से बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई है। बस यही श्री विधुशेखर भट्टाचार्य महाशय के लेख का सारांश है।
बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का उल्लेख करने के उपरान्त अब हम गौतम बुद्ध की धार्मिक शिक्षाओं का कुछ सारांश यहाँ देते हैं।
गौतम बुद्ध ने श्रावकों (गृहस्थ शिष्यों) के लिये मनाही की निम्नलिखित पाँच आज्ञाएँ दी हैं, जो निस्सन्देह हिन्दू धर्म शास्त्र के पाँच महापातकों से ली गई हैं
"श्रावकों को किसी जीव की हत्या न करनी चाहिए और न किसी से हत्या करानी चाहिए; और यदि दूसरे लोग उसकी हत्या करें, तो उनकी प्रशंसा भी नहीं करनी चाहिए । श्रावकों को चाहिए कि वे प्रत्येक प्राणी के वध का विरोध करें, चाहे वह प्राणी छोटा हो या बड़ा, निर्बल हो या बलवान् ।
"श्रावकों को किसी स्थान से कभी कोई ऐसी वस्तु न लेनी चाहिए, जिसे वे जानते हों कि दूसरे की है और जो उन्हें नहीं दी गई है। उन्हें दूसरों को भी ऐसी वस्तु न लेने देनी चाहिए; और जो लोग लें, उनकी प्रशंसा न करनी चाहिए। उन्हें सब प्रकार की चोरी का त्याग करना चाहिए।
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