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चौद्ध-कालीन भारत
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(२) उन्हें उचित भोजन और वेतन देना चाहिए। (३) रोग की अवस्था में उनकी सेवा शुश्रूषा करनी चाहिए। .
(४) असाधारण उत्तम वस्तुओं में से उन्हें भी कुछ भाग देना चाहिए।
(५) उन्हें कभी कभी छुट्टी देनी चाहिए। सेवकों को स्वामी के साथ इस प्रकार बर्ताव करनाचाहिए(१) उन्हें अपने स्वामी के पहले उठना चाहिए । (२) उन्हें अपने स्वामी के पीछे सोना चाहिए । (३) उन्हें जो कुछ मिले, उससे सन्तुष्ट रहना चाहिए । (४) उन्हें पूरी तरह से प्रसन्न होकर कार्य करना चाहिए । (५),उन्हें स्वामी की प्रशंसा करनी चाहिए ।
गृहस्थ और भिक्षु ब्राह्मण आर्य गृहस्थ को भिक्षुओं और ब्राह्मणों की इस प्रकार सेवा करनी चाहिए
(१) उसे भिक्षुओं और ब्राह्मणों के प्रति अपने कार्य से प्रीति दिखानी चाहिए।
(२) उसे भिक्षुओं और ब्राह्मणों के प्रति अपने वचन से प्रीति दिखानी चाहिए।
(३) उसे भिक्षुओं और ब्राह्मणों के प्रति विचार से प्रीति दिखानी चाहिए।
(४) उसे भिक्षुओं और ब्राह्मणों का हृदय से स्वागत करना चाहिए।
(५) उसे भिक्षुओं और ब्राह्मणों की सांसारिक आवश्यकताएँ दूर करनी चाहिएँ।
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