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बौद्ध-कालीन भारत
"बुद्धिमान मनुष्यों को व्यभिचार का त्याग जलते हुए कोयले की तरह करना चाहिए । यदि वे इन्द्रियों का निग्रह न कर सकें, तो उन्हें दूसरे की स्त्री के साथ व्यभिचार भी न करना चाहिए ।
"किसी मनुष्य को न्यायालय में या और कहीं दूसरे से झूठ न बोलना चाहिए। उसे दूसरे से भी झूठ न बोलवाना चाहिए;
और जो लोग झूठ बोलें, उनकी प्रशंसा न करनी चाहिए। उसे सब असत्य बातों का त्याग करना चाहिए ।
"जो गृहस्थ इस धर्म को मानता हो, उसे कोई नशा न पीना चाहिए। उसे दूसरों को भी नशा न पिलाना चाहिए; और जो लोग पीएँ, उनकी प्रशंसा भी न करनी चाहिए ।
उक्त पाँचों आज्ञाएँ, जो "पंचशील" के नाम से प्रसिद्ध हैं, सब बौद्धों के लिये अर्थात् गृहस्थ और भिक्षु दोनों के लिये हैं। वे संक्षेप में इस प्रकार कही गई हैं
(१) किसी जीव को न मारना चाहिए ।
(२) जो वस्तु न दी गई हो, उसे न लेना चाहिए; अर्थात् चोरी न करनी चाहिए।
(३) झूठ न बोलना चाहिए। (४) कोई नशा न करना चाहिए। (५) व्यभिचार न करना चाहिए।
पाँच नियम और भी दिये गये हैं, जो गृहस्थों के लिये अत्यावश्यक नहीं हैं; पर भिक्षुओं और कट्टर धार्मिक गृहस्थों के लिये परम आवश्यक हैं । वे ये हैं
* पाम्मिक मुच, मुत्तनिपात (१९-२३)
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