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जैनधर्म काइतिहास से इस ग्रंथ की लिखी हुई बातें सर्वथा माननीय नहीं हैं; क्योंकि जितने तीर्थकर हुए हैं, उन सब की जीवनी इसमें प्रायः एक ही शैली या ढंग पर लिखी गई है। इस ग्रन्थ से पता लगता है कि अन्य तीर्थंकरों की तरह पार्श्व भी क्षत्रिय कुल के थे। वे काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे । उनकी माता का नाम वामा था । तीस वर्षों तक गृहस्थी का सब सुख भोगकर और अंत में अपना राज-पाट छोड़कर वे परिव्राजक हो गये थे। चौरासी दिनों तक ध्यान करने के बाद वे पूर्ण ज्ञान को प्राप्त हुए । तभी से वे लगभग सत्तर वर्षों तक परमोच्च अर्हत पद पर रहते हुए सम्मेत पर्वत के शिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए । पार्श्वनाथ के धार्मिक सिद्धान्त प्रायः वही थे, जो बाद को महावीर स्वामी के हुए। कहा जाता है कि पार्श्व अपने अनुयायियों को निम्नलिखित चार नियम पालन करने की शिक्षा देते थे-(१) प्राणियों की हिंसा न करना; (२) सत्य बोलना; (३) चोरी न करना;
और ( ४ ) धन पास न रखना । महावीर ने एक पाँचवाँ नियम ब्रह्मचर्य-पालन के संबंध में भी बनाया था। इसके सिवा पार्श्व ने अपने अनुयायियों को एक अधोवस्त्र और एक उत्तरीय पहनने की अनुमति दी थी; पर महावीर अपने शिष्यों को बिलकुल नग्न रहने की शिक्षा देते थे । कदाचित् आजकल के "श्वेतांबर" और "दिगंबर" जैन संप्रदाय प्रारंभ में क्रम से पार्श्व और महावीर के ही अनुयायी थे । . महावीर खामी की जीवनी–महावीर के जीवन की घटनाओं का संक्षिप्त विवरण लिखना सहज नहीं है, क्योंकि जैन कल्प-सूत्र में, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है, महावीर स्वामी
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