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बुख की जीवनी
अपने हाथ में रखना चाहते थे । मल्लों के राजा ने चिता के स्थान पर स्तूप बनाने का प्रबंध किया था । इसी बीच में मगध-राज अजातशत्रु ने, वैशाली के लिच्छवियों ने, कपिलवस्तु के शाक्यों ने, अल्लकप्प के बुलियों ने, रामग्राम के कोलियों ने और पावा के मल्लों ने कुशीनगर के मल्ल-राज के पास दूत के द्वारा लिख भेजा-"भगवान क्षत्रिय थे; हम भी क्षत्रिय हैं । इस नाते उनके शरीर पर हमारा भी स्वत्व है।" वेथदीप के ब्राह्मणों ने भी इसी विषय में मल्ल-राज को लिखा । यह देखकर मल्लराज ने कहा-"भगवान् का शरीर हमारी सीमा में छूटा है; अतएव हम किसी को न देंने ।" यह सुनकर सब राजे दलबल सहित कुशीनगर पर चढ़ आये और घोर युद्ध की संभावना होने लगी। यह देख "द्रोण" या "द्रोणाचार्य' नाम के एक ब्राह्मण ने सब के बीच में खड़े होकर कहा-“हे क्षत्रियो ! जिस महात्मा ने यावज्जीवन शान्ति का उपदेश दिया, उसी की अस्थियों के अवशिष्टांश के लिये यदि आप लोग घोर युद्ध करें, तो बड़ी लज्जा की बात है। मैं इस पवित्र अस्थि-समूह के आठ भाग किये देता हूँ। आप लोग अपने अपने भाग लेकर सब दिशाओं में उनके ऊपर स्तूप बनाइये, जिससे उनकी कीर्ति दिगन्तव्यापिनी हो।" इस उचित सम्मति से सब लोग सहमत हुए। तब द्रोणाचार्य ने बुद्ध की पवित्र अस्थियों के आठ भाग किये और वे आठों भाग आठ जातियों में बाँट दिये गये। उन पर प्रत्येक जाति ने एक एक स्तूप बनवाया। इन आठ स्थानों में बुद्ध की अस्थियों के ऊपर स्तूप बनवाये गये थे-राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकप्प, रामग्राम, वेथदीप, पावा और
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