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सिद्धान्त और उपदेश प्रकार की है; अर्थात् सुख की लालसा, जीवन की लालसा और . शक्ति की लालसा । हे भिक्षुओ, यह द्वितीय आर्य सत्य है ।
"हे भिक्षुओ, लालसाओं के पूर्ण निरोध से अर्थात् कामनाओं को दूर करने से, लालसाओं को छोड़ देने से, कामना के बिना कार्य चलाने से और कामनाओं का नाश करने से दुःख दूर हो सकता है। हे भिक्षुओ, यह तृतीय आर्य सत्य है।
"हे भिक्षुओ, यह पवित्र मार्ग आठ प्रकार का है, जिससे दुःख दूर होता है; अर्थात् (१) सत्य विश्वास, (२) सत्य कामना, (३) सत्य वाक्य, (४) सत्य व्यवहार, (५) सत्य उपाय, (६) सत्य उद्योग, (७) सत्य विचार और (८) सत्य ध्यान । हे भिक्षुओ, यह चतुर्थ आर्य सत्य है ।" * . इस उपदेश का सारांश यह है कि जीवन दुःख है; जीवन
और उसके सुखों की लालसा दुःख का कारण है; उस लालसा के मर जाने से दुःख का नाश हो जाता है; और पवित्र जीवन से यह लालसा नष्ट हो जाती है।
मध्यम पथ-बुद्धदेव ने अपनी धर्म-साधना के लिये "मज्झिमा परिपदा" अर्थात् मध्यम पथ का अविष्कार किया। उन्होंने कहा हैदोअन्तिम कोटियाँ हैं। एक "कामेष कामसुखल्लिकानुयोगः" अर्थात् विषयों के उपभोग में लीन होकर रहना; और दूसरी "अत्तकिलमथानुयोगः” अर्थात् कठिन साधनाओं के द्वारा आत्मा को शान्त करने में लगे रहना। इन दोनों कोटियों का परित्याग करके इन दोनों के मध्य का मार्ग अवलम्बन करना चाहिए;
* महावग, १.६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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