________________
बौद्ध-कालीन भारत
विरुद्ध चार प्रकार के बड़े प्रयत्नों" का उल्लेख ऊपर किया गया है, वे ये हैं-पाप के रोकने का प्रयत्न; पाप की जो अवस्थाएँ उठती हैं, उनको रोकने का प्रयत्न; भलाई करने का प्रयत्न; और भलाई को बढ़ाने का प्रयत्न । वास्तव में इन चारों प्रयत्नों से यह तात्पर्य है कि मनुष्य जीवन भर अधिक भलाई करने के लिये सच्चा और निरन्तर उद्योग करे । “महात्मा होने के चारों मार्ग" ये हैंइच्छा करना, प्रयत्न करना, तैयारी करना और खोज करना । “पाँचो धार्मिक शक्तियाँ" और "आत्मिक ज्ञान की पाँचो इन्द्रियाँ" ये हैं-विश्वास, पराक्रम, विचार, ध्यान और बुद्धि । "सात प्रकार की बुद्धियाँ" ये हैं-शक्ति, विचार, ध्यान, खोज, आनन्द, आराम और शान्ति । "आठ प्रकार के मार्ग" का वर्णन पहले ही किया जा चुका है । इस प्रकार की विस्तृत आत्मोन्नति के द्वारा विचिकित्सा ( सन्देह ), कामासक्ति, राग-द्वेष, अभिमान, अविद्या आदि दसों बन्धनों को तोड़ने से अन्त में निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है। धम्मपद में आत्मोन्नति के विषय में इस प्रकार लिखा है___"जिसने अपनी यात्रा समाप्त कर ली है, जिसने शोक को छोड़ दिया है, जिसने अपने को सब ओर से स्वतंत्र कर लिया है, और जिसने सब बंधनों को तोड़ डाला है, उसके लिये कोई दुःख नहीं है। ___ "उसी का विचार शान्त है, उसी के वचन और कर्म शान्त हैं, जो सच्चे ज्ञान के द्वारा स्वतंत्र और शान्त हो गया है।" * . .
धम्मपद ९०, ९६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com