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सिद्धान्त और उपदेश है, वही ब्राह्मण है"। "वासेत्थ सुत्त" में भी लिखा है"मैं किसी को उसके जन्म से अथवा उसके किसी विशेष मातापिता से उत्पन्न होने के कारण ब्राह्मण नही कहता । मैं उसे ब्राह्मण कहता हूँ, जिसके पास कुछ न हो और फिर भी जो किसी वस्तु की लालसा न करे । जो कामना से रहित है और जिसने इन्द्रियों का दमन किया है, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।" एक बार वशिष्ठ और भरद्वाज नाम के दो युवा ब्राह्मण इस बात पर लड़ने लगे कि “मनुष्य ब्राह्मण कैसे होता है"। वे दोनों गौतम के पास उनकी सम्मति जानने के लिये गये । गौतम ने एक व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने जोर देकर जाति-भेद का खण्डन किया और कहा कि मनुष्यों का ण उनके कार्य से है, उनके जन्म से नहीं।
गौतम बुद्ध के प्रधान प्रधान सिद्धान्त संक्षेप में ऊपर दिये गये हैं। उनसे पाठकों को बौद्ध धर्म का थोड़ा बहुत ज्ञान हो गया होगा। हम ऊपर कह चुके हैं कि बौद्ध धर्म वास्तव में आत्मोन्नति की प्रणाली है; अर्थात् वह मनुष्य को एक ऐसा मार्ग बतलाता है, जिस पर चलकर वह इस संसार में पवित्र जीवन व्यतीत कर सकता है। बौद्ध-धर्म यह भी कहता है कि जो पवित्र शान्ति आत्मोन्नति करने और पवित्र जीवन व्यतीत करने से मिलती है, वह इसी संसार में प्राप्त हो सकती है। यही पवित्र शान्ति बौद्धों का स्वर्ग है, यही उनका "निर्वाण" है। गौतम बुद्ध का धर्म परलोक के लिये किसी पुरस्कार का लालच नहीं देता। भलाई स्वयं एक बड़ा पुरस्कार है। पुण्यमय
ॐ धम्मपद, ३९३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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