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बौन-कालीन भारत
“न जरा न मृत्युनं शोकः"-छान्दोग्य, ४८. ८.१. "न पश्यो मृत्यु पश्यति न रोगम्"-छान्दोग्य, ७. २६.२. "जरां मृत्युमेति"बृहदारण्यक, ३. ५. १. “न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः"-श्वेताश्वतर, २. १२.
गीता में भी कहा है-"जन्ममृत्युजरादुखैविमुक्तोऽमृतमश्नुते" अर्थात् जन्म, मृत्यु और बुढ़ापे के दुःखों से विमुक्त होकर मनुष्य अमृत अर्थात् मोक्ष का अनुभव करता है ।
(३) "आर्य सत्य चतुष्टय” नामक चार मूल सूत्रों की कल्पना भी बुद्ध की निज की उपज नहीं है। चिकित्सा शास्त्र में जो बात प्रसिद्ध थी, वही उन्होंने अध्यात्म विद्या में ग्रहण की है । चिकित्सा शास्त्र चार भागों में विभक्त है-रोग, रोग का कारण, रोग का नाश और रोग के नाश का उपाय । योग शास्त्र भी इसी पद्धति का अवलंबन करता है। उसके चार मूल सूत्र ये हैं:-संसार, संसार का हेतु, मोक्ष (अर्थात् संसार से मुक्ति)
और उस मोक्ष का उपाय । पातंजल दर्शन के भाष्यकर्ता ने ये बातें प्रकाशित की हैं:-चिकित्साशास्त्रं चतुर्ग्रह रोगः, रोगहेतुः, आरोग्य, भैषज्यमिति । एवमिदमपि शास्त्रं चतुर्म्यहमेव । तद्यथासंसारः, संसार हेतुः, मोक्षः, मोक्षोपाय इति ।
(४) कहा जाता है कि बुद्धदेव ने “मध्यम पथ" का श्राविकार किया। पर यह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि मध्यम पथ की बात बुद्ध के पहले भी प्रचलित थी। 'बौधायन सूत्र (७. २३-२४) में निम्नलिखित श्लोक पाये जाते हैं
कर्न कृत "मैनुअल श्राफ बुद्धिज्म" पृष्ठ ४६-४७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com