________________
बौख-कलीन भारत
६०
कुछ नहीं होता, तब उन्होंने कठोर से कठोर व्रत और उपवास करना प्रारंभ किया। यहाँ तक कि वे दिन में सिर्फ एक दाना चावल का खाकर रहने लगे। इससे वे सूखकर काँटा हो गये । जब उन्होंने देखा कि व्रत तथा उपवास करने से और शरीर को कष्ट देने से आत्मिक ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता, तब वे पूर्ववत् भोजन करने लगे। इसके बाद वे आत्मिक ज्ञान की खोज में बुद्ध गया गये । वहाँ वे पीपल के एक वृक्ष के नीचे ( जो पीछे से “बोधिवृक्ष" के नाम से प्रसिद्ध हुआ) बैठ गये और ध्यान करने लगे। जिस समय वे बोधि वृक्ष के नीचे समाधि में बैठे हुए थे, उस समय उन्हें उस सत्य ज्ञान का प्रकाश मिला, जिससे वे "बुद्ध" पदवी को प्राप्त हुए । “बुद्ध" पद प्राप्त करने के बाद वे बनारस गये
और वहाँ उन्होंने मृगदाव (सारनाथ ) में पहले पहल अपने धर्म का उपदेश दिया। इसके बाद वे अपने धर्म का प्रचार करते हुए चारों ओर भ्रमण करने लगे। इसके कुछ ही दिनों बाद बुद्ध के साठ प्रधान शिष्य हो गये, जिनको उन्होंने संघमें संघटित करके भिन्न भिन्न दिशाओं में अपने धर्म का प्रचार करने के लिये भेजा। एक बार वे अपने शिष्यों सहित मगध की राजधानी राजगृह को गये। वहाँ मगध-राज बिम्बिसार बुद्ध का उपदेश सुनकर अपने अनुचरों के साथ बौद्ध मत का अनुयायी हो गया। वहाँ से वे अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु गये। वहाँ शुद्धोदन और उनका समस्त परिवार बुद्ध भगवान का शिष्य हो गया। इस प्रकार बुद्ध के अविश्रान्त परिश्रम से मल्ल, लिच्छवि, शाक्य आदि क्षत्रिय जातियों ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। इधर उधर भ्रमण करते हुए बुद्ध भगवान् अन्त में कुशीShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com