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बौद्ध-कालोन भारत जहाँ बुद्ध ने जन्म लिया था; (२) “गया" जहाँ बुद्ध ने “बुद्ध पद" पाया था; (३) “सारनाथ” जहाँ बुद्ध ने प्रथम बार बौद्ध धर्म का उपदेश दिया था; और (४) "कुशीनगर" जहाँ उनका निर्वाण हुआ था। इस तरह अपने शिष्यों को उपदेश देते देते बुद्ध निर्वाण पद को प्राप्त हो गये ।
अंतिम संस्कार बुद्ध का अंतिम संस्कार वैसे ही किया गया जैसे, किसी चक्रवर्ती राजा का किया जाता है। उन का शव पाँच सौ बार कपड़ों की तहों से लपेटा गया । तब वह लोहे के एक संदूक में रक्खा गया, जो तेल से भर दिया गया । उसके ऊपर लोहे की दोहरी चद्दरें चढ़ाई गई । यह सब इसलिये किया गया, जिसमें बुद्ध के शरीर का अवशेष अग्नि में न मिल जाय; शव के जलने के बाद सुरक्षित मिल जाय । चारों ओर भिक्षुसंघों को भगवान् के निर्वाण की सूचना दी गई। सातवें दिन अंत्येष्टि क्रिया के लिये शरीर चिता पर रक्खा गया । देश देश से बौद्ध भिक्षु एकत्र हो चुके थे। अग्नि-संस्कार के थोड़े ही पहले महाकाश्यप नामक ऋषि पाँच सौ शिष्यों के सहित वहाँ आए। उन्होंने चिता की तीन बार प्रक्षिणा करके भगवान् के शरीर की पाद-वंदना की। इसके अनंतर अग्नि-संस्कार किया गया और बात की बात में वह अमूल्य शरीर जलकर भस्म हो गया। दूसरे दिन अस्थि-चयन की क्रिया हुई और बुद्ध की अस्थियाँ एक घड़े में रक्खी गई।
अस्थियों का बँटवारा कहा जाता है कि मल्ल जाति के लोग बुद्ध के अवशेष को
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