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बौर-कालीन भारत
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___बुद्ध की तपस्या गौतम सिद्धार्थ वैशाली पहुँचकर आलार कालाम नामक पंडित के ब्रह्मचर्याश्रम में गये, जहाँ तीन सौ ब्रह्मचारी विद्याध्यन करते थे। इसी पंडित से गौतम ने ब्रह्मचर्याश्रम की दीक्षा ग्रहण की; पर उनकी शिक्षा से गौतम की आत्मा को शांति न प्राप्त हुई । अतएव आलार कालाम की आज्ञा लेकर उन्होंने राजगृह की ओर प्रस्थान किया । राजगृह में महाराज बिंबिसार ने गौतम को भिक्षा दी और उनके रूप, यौवन तथा गुणों को देखकर अपना भारी मगध राज्य उन्हें अर्पित करना चाहा । पर बुद्ध ने उत्तर दिया कि यदि मुझे राज्य जैसे क्षणभंगुर पदार्थ की लालसा होती, तो मैं अपने पिता ही का राज्य क्यों छोड़ता ! यह सुनकर राजा लज्जित हुआ और बुद्धत्व प्राप्त करने पर गौतम को अपने यहाँ आने का निमंत्रण देकर महल को चला गया । उस समय राजगृह में रुद्रक नाम के एक प्रसिद्ध दार्शनिक रहते थे, जिनके आश्रम में सात सौ ब्रह्मचारी अध्ययन करते थे। कुछ दिनों तक बुद्ध ने रुद्रक के यहाँ रहकर उनसे शिक्षा प्राप्त की। पर उनकी शिक्षा से भी बुद्ध को उस निर्वाण का मार्ग न मिला, जिसे वे प्राप्त करना चाहते थे। अतएव रुद्रक की आज्ञा लेकर वे और आगे बढ़े। इस आश्रम के पाँच भिक्षु भी ज्ञान की खोज में गौतम के साथ हो लिये । ये छहों महात्मा मिक्षा ग्रहण करते हुए कई दिनों में गया पहुँचे। वहाँ गौतम ने सोचा कि सब से पहले शारीरिक शुद्धता के लिये तपस्या करना आवश्यक
है; क्योंकि बिना इसके चित्त शुद्ध नहीं हो सकता । इस विचार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com