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बाद्ध-कालीन भारत
सोचा कि यदि इसे बुद्ध-पद प्राप्त हो गया, तो केवल यही संसार से मुक्त न हो जायगा, किंतु यह अनंत प्राणियों के लिये निर्वाण । का द्वार खोल देगा । फिर हमारा राज्य कहाँ रहेगा ? यह सोचकर उसने बुद्ध को अनेक प्रकार के लालच दिये; यहाँ तक कि उसने अपनी लड़कियों को भी बुद्ध के सामने, उन्हें अपने वश में करने के लिये, भेजा। किंतु बुद्ध पर उनका कुछ भी असर न हुआ । तब मार ने अपनी सेना को बुद्ध पर आक्रमण करने की आज्ञा दी, जिसमें बुद्ध अपना आसन छोड़कर भाग जायें। इस पर बुद्ध ने पृथ्वी को छूकर शपथ की कि यदि मेरे पूर्व जन्मों के पुण्य-कार्यों से इस आसन पर मेरा अधिकार हो, तो पृथ्वी मेरी ओर से इस बात की साक्षिणी हो। बुद्ध की इस मुद्रा को "भूमिस्पर्श-मुद्रा" कहते हैं। बुद्ध के ऐसा कहने पर पृथ्वी ने गरजकर अपनी स्वीकृति दी। इस पर मार और उसकी सेना दोनों हारकर भाग गये। इसी के दूसरे दिन बुद्ध को उस सत्य-ज्ञान का प्रकाश दिखाई दिया, जिससे वे “बोधिसत्व" से “बुद्ध" पदवी को प्राप्त हुए ।
बुद्ध का प्रथम उपदेश “सम्यक् संबुद्ध" पद को प्राप्त होने पर बुद्ध सोचने लगे कि हम पहले किसे अपने धर्म का उपदेश करें । उनका ध्यान उन पाँच भिक्षुओं की ओर गया,जो उन पर अविश्वास करके उनका साथ छोड़कर चले गये थे। अपने ध्यान-बल से यह जानकर कि वे इस समय मृगदाव (सारनाथ, बनारस) में हैं, बुद्ध वहीं
गये और पहली बार उन्हें अपने धर्म का उपदेश दिया। यही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com