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बौन-कालीन भारत पुत्र राहुल ने भी ऐसा ही किया। यह देख राजा शुद्धोदन ने बहुत व्याकुल होकर भगवान् से आग्रह किया कि आगे से बिना माता-पिता की आज्ञा के कोई बालक संन्यासी न बनाया जाय । भगवान् ने यह बात मान ली और इसके अनुसार घोषणा भी प्रचारित कर दी।
बुद्ध की सौतेली माता महाप्रजावती तथा अन्य शाक्य स्त्रियों ने ब्रह्मचर्य ग्रहण करके भिक्षुणी बनने की इच्छा प्रकट की। भगवान् ने पहले तो उन्हें टाल दिया; पर उनके अत्यंत आग्रह करने पर उनकी इच्छा पूरी कर दी। महाप्रजावती पहली स्त्री थी, जिसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी। छठे वर्ष महाराज बिंबिसार की पहली महिषी क्षेमा तथा राहुल की माता यशोधरा ने भी दीक्षा ग्रहण की।
त्रयस्त्रिंश स्वर्ग से अवतरण लिखा है कि सातवें वर्ष बुद्ध भगवान् त्रयस्त्रिंशस्वर्गको गये। बुद्ध के जन्म के सातवें ही दिन उनकी माता मायादेवी का देहान्त हो गया था। दूसरे जन्म में माया त्रयखिंश स्वर्ग में, एक देवता के रूप में, पैदा हुई। अपनी माता को भी बौद्ध धर्म की दीक्षा देने के लिये बुद्ध त्रयस्त्रिंश स्वर्ग को गये और वहाँ तीन महीने रहकर उन्होंने माया को बौद्ध धर्म का उपदेश दिया। तीन महीने बाद जब पृथ्वी पर फिर बुद्ध के लौटने का समय हुआ, तब इंद्र ने विश्वकर्मा से सोने की तीन सीढ़ियाँ बनाने को कहा। उन तीनों सीढ़ियों से बुद्ध तथा उनके साथ इंद्र और
ब्रह्मा संकाश्य (आधुनिक संकीसा, जिला फर्रुखाबाद) में उतरे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com