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बुद्ध की जीवनी वहाँ पर, कुछ वर्ष हुए, संयुक्त प्रांत की ऐतिहासिक समिति (यू० पी० हिस्टारिकल सोसाइटी) की ओर से खुदाई भी कराई गई थी।
नालगिरि हाथी का दमन बुद्ध का चचेरा भाई देवदत्त उनका यश और मान देखकर उनसे बहुत डाह करता था और अंदर ही अंदर द्वेष की आग से जला करता था । उसने तीन बार बुद्ध की हत्या करने की चेष्टा की थी । एक बार जब बुद्ध राजगृह की सड़क पर जा रहे थे, तब उसने मगध के महाराज अजातशत्रु की सहायता से नालगिरि नामक एक मतवाला हाथी बुद्ध के प्राण लेने को छोड़ दिया। किंतु ज्योंही वह मतवाला हाथी नगर के फाटक के अंदर घुसा, त्योंही बुद्ध ने उस नाथी के मस्तक पर अपना हाथ फेरकर उसे अपने वश में कर लिया। उसी समय देवदत्त की सलाह से अजातशत्रु अपने बूढ़े पिता महाराज बिंबिसार को बात बात में कष्ट देने लगा। कहा जाता है कि बिंबिसार अंतिम समय में राज्य की बागडोर अपने पुत्र अजातशत्रु के हाथ में देकर एकांत-वास करने लगा। किंतु अजातशत्रु को इतना धैर्य कहाँ कि वह महाराज बनने के लिये बिंबिसार की मृत्यु की प्रतीक्षा करता ! बौद्ध ग्रंथों के अनुसार. इस राजकुमार ने अपने पिता को भूखों मार डाला । उन्हीं ग्रंथों से यह भी पता लगता है. कि जब वह गद्दी पर आया, तब बुद्ध भगवान् जीवित थे। लिखा है कि अजातशत्रु ने भगवान के सामने अपने पापों के लिये बहुत ही पश्चात्ताप किया और उनसे बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com