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बौद्ध-कालीन भारत
४८ प्रायः एक स्थान पर रहते थे और शेष मासों में भ्रमण किया करते थे।
बुद का प्रथम शिष्य उनका पहला गृहस्थ शिष्य काशी के धनाढ्य सेठ का पुत्र यश हुआ। सुख और संपत्ति की गोद में पले हुए इस युवक के धर्म-परिवर्तन का वृत्तांत उल्लेखनीय है । उसके तीन महल थे-एक जाड़े के लिये, दूसरा गरमी के लिये और तीसरा बरसात के लिये । एक दिन रात को नींद से जागकर उसने कमरे में गायिकाओं को सोते हुए पाया और उनके वस्त्रों, बालों तथा गाने के साजों को छिन्न भिन्न देखा । इस युवक ने, जो सुख के जीवन से तृप्त हो चुका था, अपने सामने जो कुछ देखा, उससे उसे बहुत घृणा हुई और गहरे विचार में पड़कर उसने कहा-"ओह ! कैसा दुःख है ! ओह ! कैसी विपत्ति है !" यह कहकर वह प्रभात के समय घर से बाहर चला गया। उस समय बुद्ध टहलने के लिये निकले थे। उन्होंने इस व्याकुल और दुःखी युवक को यह कहते हुए सुना-"ओह ! कैसा दुःख है ! श्रोह ! कैसी विपत्ति है !" इस पर बुद्ध ने उस युवक से कहा"हे यश, यहाँ कोई दुःख और कोई विपत्ति नहीं है। हे यश, यहाँ आकर बैठो । मैं तुम्हें सत्य का मार्गबतलाऊँगा ।" तब यश ने गौतम बुद्ध के मुख से सत्य-ज्ञान का उपदेश सुना । यश की सी
और माता-पिता सब उसे न पाकर बुद्ध के पास आये । वहाँ उन लोगों ने भी पवित्र सत्य-शान का उपदेश सुना; और तब वे लोग भी बुद्ध के गृहस्थ शिष्य हो गये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com