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बुख की जोवनी पाँचो बुद्ध के पहले शिष्य हुए। बुद्ध के जीवन की यह घटना "धर्मचक्रप्रवर्तन" के नाम से प्रसिद्ध है; अर्थात् बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में अपने धर्म का पहिया चलाया था और बौद्ध धर्म का प्रचार वहीं से प्रारंभ हुआ था। बुद्ध के प्रथम उपदेश का सारांश नीचे लिखा जाता है। ___ “हे भिक्षुओ, दो ऐसी बातें हैं, जो उन मनुष्यों को न करनी चाहिएँ, जिन्होंने संसार त्याग दिया है। अर्थात् एक तो उन वस्तुओं की आदत न डालनी चाहिए, जो मनोविकार और विशेषतः कामासक्ति से उत्पन्न होती हैं; क्योंकि यह नीच, मिथ्या, अयोग्य और हानिकर मार्ग है। यह मार्ग केवल संसारी मनुष्यों के योग्य है । और दूसरे उन्हें अनेक दूसरी तपस्याएँ भी नहीं करनी चाहिएँ; क्योंकि वे दुःखदायी, अयोग्य और हानिकर हैं । हे भिक्षुओ, इन दोनों बातों को छोड़कर एक बीच का मार्ग है, जो नेत्रों को खोलता और ज्ञान देता है। उससे मन की शांति, उच्चतम ज्ञान और पूर्ण प्रकाश अर्थात् निर्वाण प्राप्त होता है ।"
इसके उपरांत बुद्ध ने उन्हें दुःख, उसके कारण, उसके नाश और उसका नाश करने के मार्ग के संबंध में अनेक बातें बतलाई । जिस मार्ग का वर्णन बुद्ध ने किया, उसमें ये आठ बातें हैं यथार्थ विश्वास, यथार्थ उद्देश, यथार्थ भाषण, यथार्थ कार्य, यथार्थ जीवन, यथार्थ उद्योग, यथार्थ मनःस्थिति और यथार्थ ध्यान । और इसी को 'अट्ठांगिक मग्गा'(अष्टांगिक मार्ग) कहते हैं।
इन पाँच भिक्षुओं को अपने धर्म में दीक्षित करके महात्मा बुद्ध ने पैंतालिस वर्ष तक सारे उत्तरी भारत में इधर उधर भ्रमण
करके बौद्ध मत का प्रचार किया। वे केवल चातुर्मास्य में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com