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बौद्ध-कालीन भारत उदर-पालन करता हुआ संसार के उपकार में जीवन व्यतीत कर रहा है। उसी समय राजकुमार के मन में संसार का त्याग करके भिक्षु बनने की प्रबल कामना जाप्रत हुई।
राहुल का जन्म कुमार के अट्ठाईसवें वर्ष राजकुमारी यशोधरा गर्भवती हुई और उनके गर्भ से यथा समय राहुल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। उन्हीं दिनों उनके मन में संन्यास ग्रहण करने का विचार प्रबल हो रहा था। ऋषि-ऋण तथा देव-ऋण से तो कुमार पहले ही उऋण हो चुके थे; पुत्रोत्पत्ति का समाचार सुनकर उन्होंने अपने को पितृ-ऋण से भी मुक्त समझा। अब वे तीनों ऋणों से मुक्त होकर अपने आप को मोक्ष पद का अधिकारी समझने लगे। इस विचार के उठते ही उनके मुख पर सोलहो कलाओं से पूर्ण आनंद-रूपी इंदु का उदय हुआ; किंतु तत्काल ही पुत्रोत्पत्ति से उत्पन्न राग ने उनके वैराग्य से उत्पन्न आनंद पर आक्रमण किया और उनका सारा मानसिक सुख अंतर्धान हो गया । अतएव उनके मन में आया कि यह पुत्र राहु है, जिसने मेरे आनंद-चंद्र को प्रस लिया। इसी से उन्होंने उसका नाम "राहुल" रक्खा ।
महाभिनिष्क्रमण (गृह त्याग) उस रात्रि को बुद्ध अपनी स्त्री को एक बार देखने के लिये गये । वहाँ उन्होंने जगमगाते हुए दीपक के प्रकाश में बड़े सुख
का दृश्य देखा । उनको युवा पत्नी चारों ओर फूलों से घिरी हुई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com