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बुद्ध की जीवनी से कुमार का मन वैराग्य की ओर से हटता न देखा, तब उन्होंने उन्हें विवाह बंधन में जकड़ने का मनसूबा बाँधा। __सोलह वर्ष की उम्र में राजकुमार का विवाह पड़ोस के कोलिय वंश की राजकुमारी यशोधरा से कर दिया गया। राजकुमार सदा महलों के अंदर रक्खे जाते थे; क्योंकि उनके पिता को यह भविष्यद्-वाणी याद थी कि राजकुमार राज्य त्यागकर वैराग्य ग्रहण करेंगे। जब राजकुमार उन्तीस वर्ष के हुए, तब दैवी प्रेरणा से उन्होंने अपने सारथी को सैर के लिये महलों के बाहर रथ ले चलने को कहा । जब वे रथ पर चढ़कर महल के बाहर जा रहे थे, तब देवताओं ने उनके मन को वैराग्य की ओर प्रवृत्त करने के लिये एक बहुत ही जीर्णकाय बुड्ढे मनुष्य को उनके सामने भेजा। राजकुमार ने रथ हाँकनेवाले से पूछा-“यह कौन है ?" सारथी ने उत्तर दिया-"यह वृद्ध मनुष्य है । हर एक प्राणी को एक न एक दिन ऐसा ही होना पड़ता है।" यह बात सुनकर राजकुमार के मन में संसार-सुख के प्रति अत्यंत ग्लानि उत्पन्न हुई। वहीं से वे महल में लौट आये । इसी तरह दूसरे और तीसरे दिन एक रोगी और एक मुरदा राजकुमार को दिखलाई दिया। राजकुमार ने उसी तरह सारथी से प्रश्न किया, जिसके उत्तर में उसने राजकुमार को जो बात उन दोनों के संबंध में कही, उससे राजकुमार के मन में और भी वैराग्य बढ़ा। चौथी बार, जब वे उपवन को जा रहे थे, रास्ते में उन्हें एक -काषाय वस्त्र-धारी भिक्षु दिखलाई पड़ा । जब उन्होंने सारथी से पूछा कि यह कोन है, तब उसने कहा कि यह भिक्षु है, जो सांसारिक सुख और ऐश्वर्य को त्यागकर केवल भिक्षा से अपना
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