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जैन धर्म का इतिहास पू० ५२७ माना जाय, तो फिर महावीर अजातशत्रु के समकालीन नहीं हो सकते। अतएव महावीर का निर्वाण-काल ई० पू० ५२७ नहीं माना जा सकता। डा० जैकोबी महाशय ने प्रसिद्ध जैन ग्रंथकार हेमचंद्र के आधार पर यह निश्चय किया है कि महावीर का निर्वाण ई० पू० ४६७ के लगभग हुआ । संभवतः जैकोबी महाशय का यह मत ठीक है; अतएव इस ग्रंथ में हम यही मत स्वीकृत करते हैं ।
जैन धर्म के सिद्धांत -बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म भी भिक्षुओं का एक संप्रदाय है। बौद्धों की तरह जैन भी जीव-हिंसा नहीं करते । कुछ बातों में तो वे बौद्धों से भी बढ़ गये हैं; और उनका मत है कि केवल पशुओं और वृक्षों में ही नहीं, बल्कि अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी के परमाणुओं में भी जीव है। बौद्धों की तरह जैन लोग भी वेद को प्रमाण नहीं मानते । वे कर्म
और निर्वाण के सिद्धांत को स्वीकृत करते हैं और आत्मा के पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं । वे लोग चौबीस तीर्थकरों को मानते हैं।
जैनियों के पवित्र ग्रंथों अर्थात् आगमों के सात भाग हैं, जिनमें से अंग सब से प्रधान भाग है। अंग ग्यारह हैं, जिनमें से "आचारांग- सूत्र" में जैन भिक्षुओं के आचरण-संबंधी नियम
और "उपासक दशा-सूत्र" में जैन उपासकों के आचरण संबंधी नियम दिये गये हैं।
• Cambridge History of India, Vol. I. Ancient India, p. 156. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com