________________
जैन धर्म का इतिहास
कुषण राजा कनिष्क के समय के तथा उसके बाद के हैं। इन शिलालेखों से पता लगता है कि श्वेतांबर संप्रदाय ईसा की प्रथम शताब्दी में विद्यमान था ।
ईसवीसन के बाद जैन धर्म की स्थिति-ईसवी सन के बाद का जैन धर्म का प्राचीन इतिहास अंधकार में पड़ा हुआ है । उस समय के इतिहास पर यदि कोई प्रकाश पड़ता है, तो वह केवल मथुरा के शिला-लेखों से। उनसे जैन धर्म की भिन्न भिन्न शाखाओं और संप्रदायों का कुछ कुछ पता लगता है; और उनसे जैन धर्म की जो अवस्था सूचित होती है, वही अभी तक विद्यमान है। हाँ, इन बीस शताब्दियों में उन संप्रदायों के नाम और बाहरी
रूप कदाचित बहुत कुछ बदल गये हैं। इन शिलालेखों में .. उन गृहस्थ उपासकों और उपासिकाओं के नाम भी मिलते हैं, जिन्होंने भिन्न भिन्न समयों में भिक्षुओं और भिक्षुनियों को दान देकर जैनों के भिक्षु-संप्रदाय को जीवित रक्खा था। इसके सिवा जैन लोग सदा से अपनी पुरानी प्रथाओं पर इतने दृढ़ रहे हैं और किसी प्रकार के परिवर्तन से इतने भागते रहे हैं कि जैन धर्म के मोटे मोटे सिद्धांत श्वेतांबरों और दिगंबरों के अलग अलग होने के समय जैसे थे, वैसे ही प्रायः अब भी चले जा रहे हैं। कदाचित् इसी से अब भी जैन धर्म बना हुआ है, जब कि बौद्ध धर्म का अपनी जन्म-भूमि से बिलकुल लोप हो गया है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com