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बौर-कालीन भारत
३४ बहुधा मगध के राजा बिंबिसार और अजातशत्रु (कूणिक ) से मिलते थे। जैन ग्रंथों से पता चलता है कि उन्होंने मगध के उच्च से उच्च समाजों में से बहुत से लोगों को अपने धर्म का अनुयायी बनाया था । जैन ग्रंथों के अनुसार बिंबिसार और अजातशत्रु महावीर स्वामी के अनुयायी थे। पर बौद्ध ग्रंथों में ये दोनों राजा बुद्ध भगवान् के शिष्य कहे गये हैं। मालूम होता है कि दोनों राजा महावीर और बुद्ध दोनों का समान आदर करते थे।
महावीर स्वामी का निर्वाण-महावीरस्वामी ने बहत्तर वर्ष की उम्र में यह नश्वर शरीर छोड़कर निर्वाण पद प्राप्त किया। उनका देहावसान पटने जिले के पावा नामक प्राचीन नगर में राज हस्तिपाल के एक लेखक के घर में हुआ था। इस स्थान पर अब भी सहस्रों जैन यात्री दर्शन के लिये जाते हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार महावीर का निर्वाण विक्रमी संवत् के ४७० वर्ष पहले अर्थात् ई० पू० ५२७ में हुआ था । पर महावीर का निर्वाण-काल ई० पू० ५२७ वर्ष मानने में एक बड़ी अड़चन यह पड़ती है कि महावीर और बुद्ध समकालीन नहीं ठहरते । अतएव बौद्ध ग्रंथों का यह लिखना मिथ्या हो जाता है कि बुद्ध और महावीर दोनों समकालीन थे। इस बात से प्रायः सभी सहमत हैं कि बुद्ध भगवान् का निर्वाण ई०पू० ४८० और ४८७ के बीच किसी समय हुआ। महावीर का निर्वाण-काल ई० पू०५२७ वर्ष मानने से महावीर और बुद्ध दोनों के निर्वाण-काल में ५० वर्षों का अन्तर पड़ जाता है । पर बौद्ध और जैन दोनों ही ग्रंथों से पता चलता है कि महावीर और बुद्ध दोनों अजातशत्रु (कूणिक) के समकालीन थे । यदि महावीर का निर्वाण-काल ई० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com