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जैन धर्म काइतिहास था। आगे चलकर वही महावीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । जैनकल्प-सूत्र से पता लगता है कि महावीर जब पुष्पोत्तर नामक स्वर्ग से जन्म लेने के लिये उतरे, तब वे ऋषभदत्त नाम के ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा के गर्भ में आये । ये दोनों ( ब्राह्मण और ब्राह्मणी )भी कुंडग्राम में ही रहते थे। पर इसके पहले यह कभी नहीं हुआ था कि किसी महापुरुष ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया हो । अतएव शक्र (इन्द्र) ने उस महापुरुष को देवानंदा के गर्भ से हटाकर त्रिशला के गर्भ में रख दिया। यहाँ यह कह देना उचित जान पड़ता है कि इस कथा को केवल श्वेतांबरी जैन मानते हैं; दिगंबरी लोग इसे नहीं मानते । दिगंबरी और श्वेतांबरी संप्रदायों में मत-भेद की जो बहुत सी बातें हैं, उनमें से एक यह भी है।
वर्धमान के जन्म लेने पर राजा सिद्धार्थ के यहाँ बड़ा उत्सव मनाया गया। बड़े होने पर उन्हें सब शास्त्रों और कलाओं की पूर्ण शिक्षा दी गई। समय आने पर यशोदा नाम की एक राजकुमारी से उनका विवाह हुआ । इस विवाह से वर्धमान को एक कन्या उत्पन्न हुई, जो बाद को जमालि से ब्याही गई। जब वर्धमान ने "जिन" या "अर्हत" की पदवी प्राप्त करके अपना धर्म चलाया, तब जमालि अपने श्वसुर का शिष्य हुआ । उसी के कारण बाद को जैन धर्म में पहली बार मत-भेद खड़ा हुआ । वर्धमान ने अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद अपने ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन की आज्ञा लेकर, तीसवें वर्ष, घर-बार छोड़कर, भिक्षु
ओं का जीवन ग्रहण किया। भिक्षु-संप्रदाय ग्रहण करने के बाद वर्धमान ने बहुत उत्कट तपस्या करना प्रारंभ किया। यहाँ तक
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