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जैनधर्म का इतिहास
माँगकर खाना, बन में रहना, एक ही स्थान पर लगातार न रहना, बाह्य और आभ्यन्तरिक शुद्धता रखना, प्राणियों की हिंसा न करना, सत्य का पालन करना, किसी से ईर्ष्या न करना, सब पर दया करना और सब को क्षमा करना, ये सब कर्तव्य परिब्राज के हैं।" जैन ग्रंथों में भी दूसरे शब्दों में भिक्षुओं के यही कर्तव्य दिये गये हैं। इससे प्रकट है कि भिक्षुओं के नियम तथा उनके जीवन का क्रम महावीर स्वामी ने भी ब्राह्मण धर्म से ही ग्रहण किया था।
जैन धर्म की प्राचीनता-बहुत समय तक लोगों का यह विश्वास था कि जैन धर्म भी बौद्ध धर्म की ही एक शाखा है । लेसन, वेबर और विल्सन आदि युरोपीय विद्वानों का मत था कि जैन लोग बौद्ध ही थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म छोड़कर उस धर्म की एक अलग शाखा बना ली थी। बौद्ध और जैन ग्रंथों तथा सिद्धांतों में बहुत कुछ समानता है; इसी से कदाचित् इन विद्वानों ने यह निश्चय किया था कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की ही एक शाखा है। पर डाक्टर ब्यूलर और डाक्टर जैकोबी इन दो जर्मन विद्वानों ने जैन ग्रंथों की खूब अच्छी तरह खोज करने और बौद्ध धर्म तथा ब्राह्मण धर्म के ग्रंथों से उनकी तुलना करने के बाद पूरी तरह से इस मत का खंडन कर दिया है। अब यह सिद्ध हो गया है कि जैन और बौद्ध दोनों धर्म साथ ही साथ उत्पन्न हुए थे और कई शताब्दियों तक साथ ही साथ प्रचलित रहे। र अन्त में बौद्ध धर्म का तो भारतवर्ष में लोप हो गया, और जैन धर्म अब तक यहाँ के कुछ भागों में प्रचलित है। कुछ विद्वानों का तो यह भी मत है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से भी पुराना है।
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