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बौद्ध-कालीन भारत
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यह दिया कि ज्ञान के द्वारा अज्ञान का नाश करके मनुष्य दुःख से मुक्ति पा सकता है। पर ये तीनों उत्तर मनुष्यों के हृदयों को संतोष और शांति देने में असमर्थ थे। उस समय समाज में सब से बड़ी आवश्यकता सहानुभूति, प्रेम और दया की थी। समाज में नीरसता, निर्दयता और शुष्क ज्ञान मार्ग का प्रचार हो रहा था। उस समय समाज को एक ऐसे वैद्य की आवश्यकता थी,जो उसके इस रोग की ठीक तरह से दवा करता। भगवान बुद्धदेव ने अवतार लेकर समय की आवश्यकता को ठीक तरह से समझा; और तब अच्छी तरह सोच समझकर उन्होंने दुनिया को जो उपदेश दिया, और जो नई बात लोगों को बतलाई, वह यह थी कि जो लोग संसार में धर्म-मार्ग पर चलना चाहते हों और परोपकार तथा आत्मोन्नति में लगना चाहते हों, उन्हें चाहिए कि वे दयालु, सदाचारी और पवित्र-हृदय बनें । बुद्ध के पहले लोगों का विश्वास था यज्ञों में, मंत्रों में, तपस्याओं में और शुष्क ज्ञान-मार्ग में। पर बुद्ध ने यज्ञ, मंत्र, कर्म काण्ड और धर्माभास की जगह लोगों को अपना अंतःकरण शुद्ध करने की शिक्षा दी । उन्होंने लोगों को दीनों और दरिद्रों की भलाई करने, बुराई से बचने, सब से भाई की तरह स्नेह रखने और सदाचार तथा सच्चे ज्ञान के द्वारा दुःखों से छुटकारा पाने का उपदेश दिया। उनकी दृष्टि में ब्राह्मण और शूद्र, ऊँच और नीच, अमीर
और गरीब सब बराबर थे। उनके मत से सब लोग पवित्र जीवन के द्वारा निर्वाण-पद प्राप्त कर सकते थे । वे सब को अपने इस धर्म का उपदेश देते थे। बुद्ध भगवान् की पवित्र शिक्षाओं का यह प्रभाव हुआ कि कुछ ही शताब्दियों में बौद्ध धर्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com