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भारत की दशा उनमें से जीवन के महत्त्व का भाव उठता जा रहा था लोग
आत्मिक जीवन का गौरव भूलने लगे थे। इस यज्ञ-प्रथा का दूसरा बुरा प्रभाव यह था कि मनुष्यों में जड़ पदार्थ की महिमा बहुत बढ़ गई थी। लोग बाह्य बातों को ही अपने जीवन में सब से श्रेष्ठ स्थान देते थे। यज्ञ करना और कराना ही सब से उच्च धर्म और सब से बड़ा कार्य गिना जाने लगा था । आत्मा की वास्तिविक उन्नति की ओर लोग उपेक्षा से देखते थे । लोगों में यह विश्वास फैला हुआ था कि यज्ञ करने से पुराने किये हुए बुरे कर्मों का दोष नष्ट हो जाता है। ऐसी हालत में समाज में पवित्र आचरण और आत्मिक उन्नति का गौरव भला कब रह सकता था !
इसके अतिरिक्त यज्ञ करने में बहुत धन व्यय होता था । ब्राह्मणों को बड़ी बड़ी दक्षिणाएँ दी जाती थीं। बहुमूल्य वस्त्र, गौएँ, घोड़े और सुवर्ण इत्यादि दक्षिणा के तौर पर दिये जाते थे। कुछ यज्ञ तो ऐसे थे, जिनमें साल साल भर लग जाता था और जिनमें सहस्रों ब्राह्मणों की आवश्यकता होती थी। अतएव यज्ञ करना और उसके द्वारा यश प्राप्त करना हर किसी का काम न था। केवल धनवान ही यज्ञ करने का साहस कर सकते थे। इसलिये विचार-प्रवाह कर्म-कांड के विरुद्ध बहने लगा और लोग आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के लिये नये उपाय सोचने लगे।
हठ योग और तपस्या-आत्मिक शांति प्राप्त करने के उपायों में से एक उपाय हठ योग भी था। लोगों का यह विश्वास था कि कठिन तपस्या करने से हमें ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हो सकती है।
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