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(६ ) माहण शब्द का विशेष उल्लेख चरम श्रत केवली श्री भद्र बाहुस्वामी विरचित 'कल्पसूत्र' में उपलब्ध है, जहां कुल गुरू भगवान व उनकी माता को सूर्य चन्द्र के दर्शन कराने की विधि कराते हैं।
माहण जाति ने जैन समाज को प्राचीन काल में कई विद्वान् मुनि पुंगव व राज्यकार्य कर्ता भी अर्पण किए थे। कल्पक, शकटार, स्थूलिभद्र, श्रीयक, यक्षा, यक्ष दिन्ना, सेणा, वेणा, रेणा, आदि इतिहास प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में भी कन्नड़ के कवि पंप के लिए आपने धर्गयुग अंक २६, जुलाई ५६ में पढ़ा ही होगा। __ श्री लक्ष्मीप्रधानजी गणि ने रत्नसागर पृष्ट ६ तथा प्राचार रत्नाकर पृष्ट २३ में इस विषय का, प्रतिपादन, विस्तृत रूप से किया है । इसमें चार जैन वेद उनके अधिकारी जैनब्राह्मणों का आचार-विचार, उनके कर्तव्य, उनके द्वारा कराये जाने वाले एवं षोडष संस्कार आदि का वर्णन इसमें है।
श्री आत्मारामजी महाराज साहब कृत जैन तत्त्वादर्श भाग दो पृष्ट ३८४ में भी इस विषय का प्रतिपादन है। उत्तर भारत में प्रायः इनके ५०० और दक्षिण भारत में लगभग १००० घर हैं जो माहन, गृहस्थगुरु, गुलगुरू, महात्मा, वुढ्ढ़ सावय कहलाते हैं । प्राचीन काल से इनको प्रतिष्ठा कई राजा महाराजा अपने गुरू तरीके से करते आये हैं जिनके कई ताम्रपत्र उपलब्ध हैं। मैसूर में जैन ब्राह्मण छात्रालय एक आदर्श संस्था है।