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( ५) ग्रन्थ और ग्रन्थ कर्ता के विषय मे इतना लिखने के पश्चात् इस ग्रन्थ को देव नागरी भाषा में लिखकर सर्वजन सुगम करने वाले श्री फतेहचन्दजी महात्मा के विषय में भी थोड़ा सा उल्लेख करना आवश्यक है। आप जैन हैं साथ में 'माहण' हैं। माहण का शुद्ध अर्थ है ब्राह्मण । इस शब्द के साथ ही इस जाति की उत्पत्ति का इतिहास मुझे याद आता है जिसका उल्लेख मैंने अपने सद्य प्रकाशित उपन्यास "चक्रवर्ती भरतदेव" भाग दो में किया है। __घटना ऐसे है कि चक्रवर्ती बनने पर भी भरतदेव का हृदय योगी का था। हमारे अनुभव की बात है कि राज्य करण अच्छे २ मनुष्यों का लक्षबिन्दु भुला देता है, करने का भूला जाता है और न करने का करा बैठता है।
इस विषय में अपनी सतत जागृत रहे अतः चक्रवर्ती भरतदेव ने राज्य के व्रत तप करने वाले भोगकुली विद्वानों को बुलाया और उनसे कहा कि आज से आप मेरे उपदेशक । आप मुझे सदा, कहा करें कि
जितो वान वर्द्धते भयं तस्मात् ।
माहन माहन ॥ ... हिंसा न करो, न करो, भय बढ़रहा है ।
हिंसा किसकी ? जगत की ? नहीं! नहीं स्वयं के प्रात्मा की और भय कोई पर राष्ट्र की चढ़ाई का नहीं आत्मा की लघुता का।
यह वर्ग तब से "माहण" के नाम से प्रसिद्ध हुवा। इस