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पुल से डरो नहीं, सरिता से चमको नहीं, आगे बढ़ो। भौतिकवाद ने जगत को साधनों से, आशायशों से व सुखों से परिपूर्ण कर दिया है।
परन्तु प्राचीनकाल का पुजारी आत्मा कहता है, नही, नहीं, इससे संसार में दुःखों का उद्भव हुवा है। विमान हैं, फिर भी अभी तक समय पर न पहुंचने का असंतोष है। धन है, फिर भी दरिद्रता दिल को जकड़ कर बैठी है। सुख है, फिर भी वह दुःख के बीज जैसा है । समस्त संसार तुम्हारी भौतिक न्यामतों (देनों) से त्रस्त हो उठा है। प्रतिस्पर्धा, हिंसा, वैमनस्य, एक दूसरे के साथ छीना झपटी की नीयत घर करके बैठ गई है। मनुष्य मनुष्य का विरोधो बना हुवा है। देश पक्षों में विभक्त हो गया है। कलह के मूल इसीसे अंकुरित हुए हैं। विश्व अपनी और पराई मृगजल समी छलवृत्ति में पड़ गया है, युद्ध के दरवाजे खटखटा रहा है। संसार का साहित्य पढ़ो, समाचार पत्र देखो, भाषण सुनो, द्वेष, ईर्षा और युद्ध की चिनगारियां मानों इसमें से झरती रहती हैं, चारों तरफ मानों मुरदे पड़े हैं और मातम पोश (अग्नि संस्कार करने वाले) इनकी हाय हाय पुकार रहे हैं ।
__ संसार समय समय पर भूल भुलैया में पड़ता है और समय समय पर इसे जगाने के लिए महा गुरू आते हैं। आज भौतिकवाद का पुजारी ज़माना फिर से नई भूलभुलैया में पड़ा है।
इस वक्त हमें एक प्राचीन आवाज सुनाई देती है: